श्रीलंका के विक्रमसिंघे को 59 दिन के भीतर ही प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा है।

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श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने पद से इस्तीफा दे दिया है। आर्थिक संकट के बीच विक्रमसिंघे इसी साल 12 मई को श्रीलंका के प्रधानमंत्री का पद संभाला था। उनसे पहले महिंद्रा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री थे।

 

 

विक्रमसिंघे को 59 दिन के भीतर ही प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा है। बता दें कि श्रीलंका अभी अपनी आजादी (1948) के बाद से सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। उस पर कुल 51 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज है। द्वीप देश को अभी प्रतिवर्ष 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।

 

 

 

आर्थिक संकट के चलते श्रीलंका के आम लोगों को महंगाई, ईंधन, स्वास्थ्य समेत सभी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। रानिल विक्रमसिंघे से पहले महिंद्रा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री थे। देश के अलग-अलग हिस्सों में भारी विरोध के बाद उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। गुस्साई भीड़ ने उनके पुस्तैनी घर को भी आग के हवाले कर दिया था। यही नहीं उनकी सरकार के कई मंत्रियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था।

 

 

वहीं तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद महिंद्रा राजपक्षे के भाई गोटबया राजपक्षे अभी राष्ट्रपति की कुर्सी पर बने हुए हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे 2019 में भारी बहुमत से राष्ट्रपति चुने गए थे। उसके पहले उसी साल ईस्टर के मौके पर देश में भयानक आतंकवादी हमले हुए थे।

 

 

इस हमले से बने माहौल के बीच राजपक्षे ने देश की बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध आबादी की सुरक्षा मजबूत करने का वादा किया था। लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उनका प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा। इसी बीच कोरोना महामारी आ गई, जिससे पर्यटन ठप हो गया। उसका श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में बहुत खराब असर पड़ा।

 

 

श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद छोड़ने वाले रानिल विक्रमसिंघे अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं। उन्होंने पांचवी बार श्रीलंका की सत्ता संभाली थी। श्रीलंका के एक वकील से राजनेता बने विक्रमसिंघे 45 वर्षों से संसद में हैं। अपनी पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की अगस्त 2020 के आम चुनाव में हुई करारी हार और एक भी सीट जीतने में विफल रहने के लगभग दो साल बाद उन्होंने सत्ता में वापसी की थी।

 

 

73 वर्षीय नेता को भारत का करीबी माना जाता है, उन्हें देश में सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा श्रीलंका के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें राजनीतिक हलकों में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता था जो दूरदर्शी नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है।

 

 

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