उत्तराखंड के इन जिलों के कुछ क्षेत्रों में गायों में फैल रहा लंपी वायरस, दो दर्जन पशुओं में दिखे लक्षण

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चिकित्सा विभाग में अधिकारियों के पद रिक्त होने के कारण पशुओं को समय से उपचार भी नहीं मिल पा रहा है.पिथौरागढ़ और बागेश्वर के कुछ क्षेत्रों में गायों में लंपी वायरस बहुत तेजी से फैला हुआ है. बागेश्वर में अभी तक दो दर्जन पशुओं में लंपी के लक्षण दिखे हैं.

जिसके कारण उनकी मौत हो रही है. इसके साथ कई अस्पतालों में फार्मासिस्ट व पशुधन प्रसार अधिकारियों के पदों पर भी कई सालों से भर्ती नहीं हुई है. एक पशु चिकित्सा अधिकारी दो से अधिक पशु अस्पतालों का कार्य देख रहे हैं. 

इस हालत में इन अधिकारियों का ग्रामीण स्तर पर जाना मुश्किल हो गया है. सरकार व जिम्मेदार विभाग की लापरवाही से अब लंपी स्किन डिजीज वायरस, ग्रामीण क्षेत्रों में अपना कहर बरपा रहा है. जिलाधिकारी रीना जोशी ने जिले में एक माह तक गौवंशीय पशुओं के आवागमन सहित विभिन्न गतिविधियों पर रोक लगा दी है. पशुपालन विभाग को लगातार गांव में शिविर लगाकर पशुपालकों को जागरूक करने और वायरस से बचाव की जानकारी देने के आदेश दिए गये हैं. 

डॉ. प्रणव अग्रवाल पशु चिकित्साधिकारी के द्वारा बेरीनाग के कांडे किरौली क्षेत्र में लंपी स्किन के रोग को लेकर पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है. गौशाला की साफ सफाई और अन्य दवाओं की भी जानकारी दी जा रही है. आपको बता दें कि डुंगरगांव और मजबे गांव में पशुओं की बीमारी को लेकर जानकारी सामने आई थी. जिसको देखते हुए पशुपालन विभाग के चिकित्सक सक्रिय हुए और गांवों का भ्रमण कर बीमार मवेशियों का स्वास्थ्य जांचा. 

बीमार पशुओं में हल्के से तेज बुखार, शरीर पर दाने, नाक और मुंह से लार आने के लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्साधिकारी डॉ.आर.चंद्रा ने बताया कि बीमारी के लक्षण लंपी स्किन डिजीज के हैं. इस बीमारी में घबराने की जरूरत नहीं है दो से तीन दिन तक इलाज कराने पर पशु ठीक हो जाते हैं. 

लंपी वायरस के लक्षण

इस वायरस के प्रकोप से पशुओं के पूरे शरीर में बड़े-बड़े दाने निकल रहे हैं. फिर पशुओं को तेज बुखार आ रहा है. पशु खाना पीना छोड़ रहे हैं. करीब एक सप्ताह के बाद पशु अपनी जगह पर से उठ नहीं पा रहे हैं. समय से उपचार नहीं मिलने के कारण पशुओं की मौत भी हो रही है. पशु स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं को समय से उपचार नहीं मिल पा रहा है. 

पहले 8-10 गावों के बीच में एक पशु सेवा केंद्र खोला गया था. उनमें एक पशुधन प्रसार अधिकारी की नियुक्ति होती थी. लेकिन पिछले 7-8 वर्षों से इन पशु सेवा केंद्रों में ताला लटका हुआ है. अगर इन पशु सेवा केंद्रों में खाली पड़े पदों को समय से भरा जाता तो आज ग्रामीण स्तर पर इस बिमारी को में फैलने में काफी हद तक काबू पाया जा सकता था. 

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