पिरूल से कोयला बनाने को तेजी से होंगे प्रयास,महिलाएं ले रही है प्रशिक्षण, वनों में आग की घटनाओं पर लगेगी रोक

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अल्मोड़ा: पहाड़ के जंगलों में हर वर्ष आग लगने का कारण बनने वाला ‘पिरुल’ (चीड़ की पत्तियां) अब रोजगार देने के साथ ही ईंधन का काम करेंगी। इसका बड़ा फायदा ये है कि वनों की आग में कमी लाई जा सकेगी। इसके लिए फिलहाल एनआरएलएम द्वारा अल्मोड़ा जिले के ब्लाक हवालबाग के ग्राम सैनार एवं तलाड़ की महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

वनाग्नि को विकराल रूप देता है ज्वलनशील पिरुल

मालूम हो कि उत्तराखंड के जंगलों में हर वर्ष आग की तमाम घटनाएं होती हैं। जिससे काफी वन संपदा व्यापक मात्रा में जलकर खाक हो जाती है। इस आग को विकराल रूप में देने में पिरुल की भूमिका रहती है। पिरुल पहाड़ के जंगलों में बहुतायत मिलता है और जंगलों में पसरा रहता है। ज्वलनशील होने के कारण कई जंगलों में आग का खतरा गर्मी में बना रहता है और आग की काफी घटनाएं होती भी हैं।

ईंधन व रोजगार मिलेगा, वनाग्नि में कमी आएगी

परियोजना निदेशक चंदा फर्त्याल ने बताया कि जिला मिशन प्रबन्धक इकाई, एनआरएलएम अल्मोड़ा द्वारा विकासखण्ड हवालबाग के ग्राम सैनार एवं तलाड़ की एनआरएलएम समूह की महिलाओं को पिरूल से कोयला बनाने का कार्य शुरू कराया जा रहा है और परियोजना के तहत इन महिलाओं को 03 दिनी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

यह प्रशिक्षण आज से शुरू 

अल्मोड़ा द्वारा विकासखण्ड हवालबाग के ग्राम सैनार एवं तलाड़ की एनआरएलएम समूह की महिलाओं को पिरूल से कोयला बनाने का कार्य शुरू कराया जा रहा है और परियोजना के तहत इन महिलाओं को 03 दिनी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह प्रशिक्षण आज से शुरू हो चुका है। जो सैनार गांव में चल रहा है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण में 31 महिलाएं हिस्सा ले रही हैं। तालीम लेने के बाद ये महिलाएं पिरुल से कोयला बनाने का कार्य शुरू करेंगी। कोयला ईंधन का काम करेगा और इस कार्य से एक तरफ महिलाओं को रोजगार मिलेगा और दूसरी तरफ वनों में आग की घटनाओं पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

रिपोर्ट – रोशनी बिष्ट

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