Women’s Day Special अल्मोड़ा की कमला ने खुद को सफल बनाकर महिलाओं के लिए मिसाल बनने का किया काम, मौन पालन से दिखाई महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह

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अल्मोड़ा। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं यह कर दिखाया है अल्मोड़ा की कमला भंडारी ने। नगर के पास खत्याड़ी की रहने वाली कमला ने खुद को सफल बनाकर अन्य महिलाओं के लिए मिसाल बनने का काम किया है।

वह शहद उत्पादन से लोगों के जीवन में मिठास घोलने के साथ उन्होंने अन्य महिलाओं को स्वरोजगार की राह दिखाई है। दो मौन पालन बॉक्स से शहद उत्पादन की शुरूआत करने वाली इस महिला के पास आज 218 बॉक्स हैं। इनसे शहद उत्पादन कर वह छह लाख रुपये सालाना कमा रही हैं। उनके शहद की दिल्ली और पंजाब तक मांग है।

खत्याड़ी की मनोज विहार कॉलोनी निवासी कमला भंडारी इंटर पास हैं। उनके पति गोविंद सिंह डिप्टी रेंजर पद पर तैनात हैं लेकिन कमला ने खुद को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी जिसमें वह सफल भी रही हैं। उन्होंने खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से छह दिन का मौनपालन प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2013 में व्यक्तिगत रूप से दो बॉक्स खरीदकर मौनपालन शुरू किया। समय के साथ वे मौनपालन के लिए अन्य बॉक्स भी स्थापित करती रहीं।

आज उनके पास मधुमक्खी पालन के 218 बॉक्स हैं। सालभर में वह सात क्विंटल शहद का उत्पादन कर सालाना छह लाख रुपये की कमा रही हैं। वह 800 रुपये प्रति किलो की दर से शहद बेचती हैं। कमला ने बताया कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं होतीं। परिश्रम करने पर निश्चित तौर में सफलता मिलती है। बताया कि उनके शहद की डिमांड अल्मोड़ा समेत हल्द्वानी, रुद्रपुर, दिल्ली, चंडीगढ़ समेत कई शहरों तक है।

10 महिलाओं को दिया है रोजगार

 भंडारी ने शक्ति समूह बनाकर 10 महिलाओं को शहद उत्पादन से जोड़कर उन्हें रोजगार दिया है। शहद निकालने से लेकर इसकी पैकिंग, विपणन की व्यवस्था ये महिलाएं कर रही हैं जिससे उनकी आर्थिकी में सुधार आया है।

कम पूंजी में कर सकते हैं मौनपालन

कमला ने बताया कि महिलाएं घरेलू काम के साथ ही कम लागत में मौनपालन कर आत्मनिर्भर बन सकती हैं। मात्र पांच हजार रुपये की लागत से घर पर ही मौनपालन की शुरूआत की जा सकती है। मौनपालन बॉक्स को घर की छत, आंगन या पास के खेत में कहीं भी आसानी से लगाया जा सकता है।

रिपोर्टर – रोशनी बिष्ट

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