लेख: सुभाष तारण: एक गाँव धीरे धीरे एक नदी के पानी में डूब रहा है। गाँव के बेघर बाशिंदों को सर छुपाने के लिए जगह की व्यवस्था तो हो ही जाती।

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एक गाँव धीरे धीरे एक नदी के पानी में डूब रहा है।
यह गाँव पानी में खुद की या नदी की वजह से नही डूब रहा, इसे डुबोया जा रहा है।

 

इस अभागे गाँव को किसके द्वारा किसके लिए डुबोया जा रहा है, यह बात सभी लोग बहुत अच्छे से जानते-समझते है। विकास के नाम पर आए दिन ऐसे कारनामे देखने सुनने को मिलते रहते हैं। पहले के समय में सरकार डूबोए जाने वाले गाँव के बाशिंदों के विस्थापन की व्यवस्था करती थी

लेकिन लोहारी के मामले में ऐसा सुनने मे आया है गाँव वालों को दर बदर कर उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। इस गाँव के डूबोए जाने का दु:ख या तो इस गाँव के लोगों को है या फिर गिनती भर के कुछ संवेदनशील लोगों को। बाकी जनता के लिए ये विकास है।

ऐसा विकास जो सरकार का खजाना भरेगा और सरकार उसे अपने चहेतों पर दिल खोल के लुटाएगी। यह वही विकास है जिसके नाम पर राजनीतिक दल वोट मांगते है और विकास प्रिय जनता उन्हें खुशी खुशी वोट देती है।

जौनसार बावर में दूसरे के घर में लगी आग से अपने हाथ तापने की राजनीतिक संस्कृति पहले कभी नही देखी गयी थी। दुरूह जीवन परिस्थितियों में लोग यहाँ मुसीबत में पड़े व्यक्ति के साथ पूरे दम के साथ खड़े हो जाते थे लेकिन अब ऐसा नही है।

 

आप जौनसार बावर के इस वर्तमान चरित्र को इस क्षेत्र के उन राज नेताओं के सत्तर सालों की उपलब्धि मान सकते है जिन्होंने जौनसर बावर के सीधे और सरल लोगों को आर्थिक रूप से ही नहीं, मानसिक रूप से भी भ्रष्ट बना दिया है।

 

जौनसार बावर के पूरे क्षेत्र में इस घटना को लेकर कोई छटपटाहट नही है। अगर इस इलाके के लोग अभी भी एक आवाज में बात करते तो कम से कम और नहीं तो लोहारी गाँव के बेघर बाशिंदों को सर छुपाने के लिए जगह की व्यवस्था तो हो ही जाती। लेकिन ऐसा लगता है कि यह दर्द केवल लोहारी वालों का है,

 

 

बाकी जौनसार बावर के लोगों को इससे कोई लेना देना ही नहीं। लेना देना हो भी क्यों, विकास जो हो रहा है। जन मुद्दे इस इलाके के नेताओं के लिए कभी कोई मायने नही रखते। ऐसे में किससे ये उम्मीद की जाए कि वो लोहारी वालों के साथ खड़ा होगा ? ये तो शुरुआत भर है। मुददों को लेकर नेताओं की यह बानगी है कि पिछले साल चकराता जाते हुए कुछ जोशीले युवाओं के मुँह से मैने एक नारा सुना था

नवीन चकराता तो पहली झाँकी है
अभी मुंडाली कथियान बाकी है।

नारे की दूसरी पंक्ति सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये थे। जंगलात चौकी से लेकर देवबन, खड़ंबा, मुंडाली और कथियान का देवदार बांज से आच्छादित और हरे भरे बुग्यालों के इस क्षेत्र में जहाँ पर्यावरण और वन मंत्रालय चरवाहों तक को पक्की छप्पर डालने की इजाजत नही देता उस पूरे हरे भरे क्षेत्र को विकास का नाम देकर टाउनशिप में बदलने के इरादतन मंसूबे बांधे जा रहे है। इस नारे से यह साफ ज़ाहिर हो जाता है कि भू-माफियाओं की नजर जंगलात चौकी से लेकर मुंडाली कथियान तक फैले सैकडों मील में फैले जंगली रकबे पर पड़ चुकी है और वह दिन दूर नही जब पर्यावरण और पारिस्थितिकी की दृष्टी से संवेदनशील इस क्षेत्र की जमीनें दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में विकास करने को लेकर आतुर रहने वाले सेठों और साहूकारों को इस आशय से दे दी जाएगी कि वे वहाँ आलीशान रिज़ॉर्ट बनाएं और उन्नत किस्म के फलों की खेती करें ताकी इस इलाके का विकास हो सके। यहाँ के लोग बेघर और बेकार हो जाएं इस बात से न तो निति-नियंताओं को कोई फर्क पड़ता है और न ही यहाँ के तथाकथित पढ़े लिखे लोगों को।

 

 

नदियों पर बड़ी तेजी के साथ बांध बनाए जाने, इसकी जद में आने वाले गाँवों को डूबोए जाने और गाँव के बाशिंदों के बिलखने का दारूण दृश्य तो आपने लोहारी गाँव में देख ही लिया। इसके साथ साथ टौंस नदी पर किशऊ और प्लासू में बांध बनाकर क्वानू सहित दर्जनों गांवों के सेरे डुबोने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। अभी लोहारी डूब रहा है तो जौनसार बावर के किसी और निवासी को कोई फर्क नही पड़ रहा, केवल लोहारी गाँव के लोग विलख रहे हैं। उसके बाद टौंस घाटी के किशऊ, क्वानू सहित दर्जनों गाँव डुबोए जाएंगे, फिर वहाँ के रहने वाले लोग बेघर होगें। किसी और को कोई फर्क नही पड़ेगा। फर्क इसलिए नहीं पड़ेगा क्योंकि इस इलाके के ज्यादातर लोग या तो भाजपा के साथ है या फिर कांग्रेस के साथ। जिन्हे डूबोया जा रहा है या डुबोया जाएगा, उनके साथ कोई नही है।

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