एस. एस. जे. यूनिवर्सिटी में फारेस्ट फायर बायोडायवर्सिटी एज ए विक्टिम एंड ए वे आउट विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का हुआ आयोजन

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सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के वानिकी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, जंतु विज्ञान विभाग एवं अल्मोड़ा वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में फारेस्ट फायरः बायोडायवर्सिटी एज ए विक्टिम एंड ए वे आउट विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का उद्घाटन जंतु विज्ञान विभाग के सभागार में हुआ।इस सेमिनार में वन संरक्षण, जैव विविधता, हिमालयी पर्यावरण, बढते वनाग्नि के आंकड़े, वन्य जंतुओं के नुकसान आदि को लेकर विद्वानों ने मंथन किया। 

 

जंतु विज्ञान विभाग के साभागार में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो0 वीर सिंह, गोबिंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर, श्री पी के पा़त्रों, मुख्य वन संरक्षक, कुमाउं प्रभाग, श्री हिमांशु बघरी, मुख्य वनाधिकारी,अल्मोड़ा-बागेश्वर, सत्राध्यक्ष प्रो0 प्रवीण सिंह बिष्ट, प्रो0 जया उपे्रती, विज्ञान संकायाध्यक्ष, सेमिनार के संयोजक प्रो0 अनिल कुमार यादव, सह संयोजक डाॅ0 संदीप कुमार, डाॅ0 मुकेश सामंत, डाॅ0 आर0सी0 मौर्य, डाॅ0 मनमोहन सिंह कनवाल, शोभा उपे्रती आदि ने द्वीप प्रज्ज्वलित कर सेमिनार का उद्घाटन किया। 

 

बीज वक्ता के रूप में पूर्व आचार्य, गोबिंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय,पंतनगर के प्रो0 वीर सिंह ने अपने उद्बोधन में  जंगल में लगने वाली आग को दार्शनिक रूप से व्याख्यित कर वन संरक्षण की अपील की। उन्होंने कहा कि पौंधे प्रकाश संश्लेषण कर हमें उर्जा प्रदान करते हैं।  उन्होंने कहा कि उद्विकास के साथ-साथ जैवविविधता भी बड़ी है। वनाग्नि से बहुमूल्य वनस्पति नष्ट हो जाती है। हमें वनाग्नि को रोककर जैवविविधता को बनाए रखना होगा।

श्री हिमांशु बघरी, डीएफओ0 ने कहा कि वनाग्नि प्राचीन समय से ही विद्यमान रही है। उत्तराखंड के ऐतिहासिक पुस्तकों में वनाग्नि के आंकड़े हमें दिखाई देते हैं। वनाग्नि से मानव को काफी नुकसान हो रहा है। हमें वनाग्नि को रोकना होगा। 

 

श्री पी0 के पात्रो सीसीएफ, कुमाउं प्रभाग ने कहा कि जंगल की आग को रोक पाना बहुत चुनौतीपूर्ण है। कई बाध्यताओं के कारण वन विभाग वनाग्नि को नहीं बुझा पाता है। हमें नवीन ज्ञान को आधार बनाकर वनाग्नि को रोकने के प्रयास करने होंगे।

कुलपति प्रतिनिधि एवं सत्राध्यक्ष प्रो0 प्रवीण सिंह बिष्ट ने अपने उद्बोधन में कहा कि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर्यावरण से लोगों का अभिन्न नाता रहा है। यहां वनाग्नि को बढ़ावा मिलना चिंताजनक है। उन्होंने सेमिनार के आयोजकों को अपनी ओर से बधाईयां प्रेषित की। 

 

इससे पूर्व सेमिनार के संयोजक प्रो0 अनिल कुमार यादव ने सेमिनार की विस्तार से रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए सेमिनार के उद्देश्यों से परिचित करवाया। उन्होंने कहा कि फाॅरेस्ट के विशेषज्ञों को इस सेमिनार में आना उपलब्धि है। वनाग्नि को लेकर उन्होंने कहा कि वनाग्नि के कारण वन संपदाओं को काफी नुकसान हो रहा है।  सह संयोजक डाॅ0 संदीप कुमार ने सेमिनार के मुख्या उद्देश्यों को रेखांकित कर उत्तराखंड के वन संसाधनों आदि को लेकर चर्चा की और अतिथियों का स्वागत किया। 

 

सेमिनार में विद्वानों ने वनाग्नि को लेकर खुली चर्चा की।कार्यक्रम का संचालन शोभा उपे्रती एवं आभार डाॅ0 मुकेश सामंत ने जताया।सेमिनार में उद्घाटन अवसर पर अतिथियों को शाॅल ओढाकर सम्मानित किया गया। 

 

इस अवसर पर सेमिनार के संयोजक प्रो0 अनिल कुमार यादव, सह संयोजक डाॅ0 संदीप कुमार, डाॅ0 मुकेश सामंत, डाॅ0 आर0सी0 मौर्य, डाॅ0 मनमोहन सिंह कनवाल, शोभा उपे्रती डाॅ0 धनी आर्या, डाॅ0 नंदन बिष्ट, डाॅ0 प्रतिभा फुलोरिया, डाॅ0 सुशील चंद्र भट्ट, श्री प्रमेश टम्टा, दीपा बिष्ट, सौरभ उपे्रती, प्रवीण गुणवंत, गौरव देवतल्ला के साथ एमएससी वानिकी एवं एमएससी, जंतु विज्ञान के सैकड़ों विद्यार्थी शामिल हुए।

 

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