Uttarakhand News:बुग्याल बचाओं अभियान का हुआ समापन,जड़ी बूटियों के बुग्यालो को बचाने की चली मुहिम

ख़बर शेयर करें -

बुग्यालों के संरक्षण को लेकर चला अभियान मंगलवार को संपन्न हो गया। नंदा देवी बायोस्फीयर के उच्च हिमालयी इलाकों में शनिवार से शुरू हुए इस बुग्याल बचाओं अभियान का समापन जोशीमठ के समीप रेगड़ी गांव में सम्पन्न हुआ।अपनी खूबसूरती व जड़ीबूटियां के खजाने के रूप में जाने जाने वाले बुग्याल को बचाने का लिया संकल्प।

🔹अभियान में डटे रहने पर आभार जताया 

वर्षा के बीच भी अभियान दल ने उच्च हिमालय में कई किलोमीटर का सफर पैदल ही पूरा किया।अभियान के समापन के मौके पर प्रख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने दल द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी अभियान में डटे रहने पर आभार जताया ।

🔹अजैविक कचरे की सफाई भी की गई

चिपको आंदोलन के दौर की याद ताजा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस रेगड़ी गांव में यह अभियान संपन्न हो रहा है वहां 1973 के आखिरी महीनों में चिपको को लेकर बैठक की शुरुआत हुई थी। यहीं से रैणी के जंगल बचाने के लिए अलग अलग गांवों में वाच-डाग कमेटी बनाने का सिलसिला शुरू हुआ था अभियान के दौरान औली से लेकर कुंवारी पास के बीच के एक दर्जन से अधिक बुग्यालों का अध्ययन तथा प्रतीकात्मक रूप से बुग्याली और उससे सटे वन इलाके में अजैविक कचरे की सफाई भी की गई।

यह भी पढ़ें 👉  देश विदेश की ताजा खबरें रविवार 17 नवंबर 2024

🔹भेड़पालकों से भी की गई बात

अभियान के दौरान दल के सदस्यों बुग्यालों की यात्रा पर देश के अलग-अलग भागों से आए पर्यटकों के अनुभवों और सुझावों का भी संकलन किया। बुग्यालों के जानकार जाने वाले लगभग आधा दर्जन भेड़पालकों से भी बातचीत की। जिनके चार से पांच दशक के बुग्यालों के अनुभवों का संकलन किया। पहली बार जिन बुग्याली इलाकों में अभियान दल गया वहां अपेक्षाकृत अजैविक अवशिष्ट से बुग्याल लगभग मुक्त रहा।

🔹प्रतिबंध के बाद भी छोड़े जा रहे है घोड़े-खच्चर

बुग्यालों में पूर्व में बड़े मवेशियों के चरान चुगान पर धार्मिक आधार पर प्रतिबंध रहता था। लेकिन पिछले एक दशक से इस इलाके में भी घोड़े-खच्चर और अनउपयोगी बड़े मवेशियों को इन बुग्यालों में छोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है। बुग्यालों के संवेदनशील पारिस्थितिकीय तंत्र पर इन बड़े मवेशियों के कारण प्रतिकूल प्रभाव जगह-जगह दल को दिखा। बुग्याल की मिट्टी और वनस्पति बहुत ही संवेदनशील होती है जिसकी समझ हमारे पूर्वजों को पहले से ही रही थी जिसके चलते उन्होंने धार्मिक आधार पर बुग्यालों में गाय-बैल और भैसों को कभी भी वहां चरान और चुगान के लिए नहीं भेजा था।

🔹छोड़े जा रहे हैं आवारा पशु

यह भी पढ़ें 👉  Weather Update:उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में ठंड के साथ घना कोहरा भी बढ़ा रहा परेशानी,22 नवंबर तक घने कोहरे को लेकर येलो अलर्ट किया जारी

इस इलाके में पिछले एक दशक से आसपास के लोग इन मान्यताओं को छोड़ते प्रतीत हो रहे है। घोड़े-खच्चरों को बुग्यालों में छोड़ने की शुरूआत के बाद अब इन बुग्यालों में अनुपयोगी मवेशियों खासकर बैल और दूध न देने वाली गाय आवारा छोड़ी जा रही है। और छोटे-छोटे इलाकों में भी बड़ी संख्या में ऐसी मवेशियों के झुंड बुग्यालों में बिचरण करते दिखे। भारत तिब्बत सीमा पुलिस के उप सेनानी ने दल को संबोधित करते हुए भारत तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। इस दौरान नंदा देवी नेशनल पार्क डिविजन के एसडीओ एस एस रावत च वनक्षेत्राधिकारी गौरव कुमार ने भी वन प्रभाग के स्तर पर समय समय पर बुग्यालों इलाकों से अजैविक कुड़ा करकट के निस्तारण के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी।

🔹ये लोग हुए शामिल

राजकीय महाविद्यालय गोपेश्वर के इतिहास विभाग के विभागध्यक्ष डा.एच सी एस रावत के नेतृत्व में चले इस अभियान में दिल्ली से नवभारत टाइम्स में पत्रकार राकेश परमार, दिल्ली से इंजिनियर गौरव बशिष्ठ, चमोली जिला न्यायालय में विशेष लोक अभियोजक राकेश मोहन पंत, विनय सेमवाल, गंगा सिंह सौम्या भट्ट, प्रतीक चतुर्वेदी,वान साई,सतेंद्र कुमार,अंकित कुमार शर्मा,अशोक कुमार आदि भी अभियान में शामिल हुए।