आखिर मुख्यमंत्री जी कब न्याय करेंगे। दिगम्बर फुलोरिया अध्यक्ष राजकीय एल टी समायोजित पदोन्नन शिक्षक संघर्ष मंच उत्तराखंड

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अल्मोड़ा: आखिर मुख्यमंत्री जी कब न्याय करेंगे ,16 मार्च 22 को शिक्षा सचिव द्वारा बेसिक शिक्षा से एल टी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती शिक्षकों के प्रकरण सुलझाने के लिए सचिवालय में आपात बैठक आहूत की गई थी साथ ही कहा गया था कि योग्य अनुभवी अधिकारी को आंकड़े सहित भेजा जाय,आखिर शिक्षा विभाग में एक अदद योग्य अनुभवी अधिकारी का अकाल क्यों पड़ गया, माननीय शिक्षा मंत्री डा धनसिह सिंह रावत जी द्वारा शिक्षक संगठनों की संयुक्त बैठक बुलाये जाने का राजकीय एल टी समायोजित पदोन्नन शिक्षक संघर्ष मंच उत्तराखंड स्वागत करता है, परन्तु मंच राजकीय शिक्षक संघ का अभिन्न अंग सदस्य भी हैं,दुख इस बात का है जो पदाधिकारी इस समय माननीय मंत्री जी के साथ बैठक में जायेंगे ,उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है और उनके ही दमन कारी नीतियों से बेसिक शिक्षा से एल टी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती शिक्षकों को 12 वर्षों से चयन प्रोन्नत वेतनमान का शासनादेश जारी करवाने में घुटनों से आशू रूलाये जा रहें हैं, सचिवालय में वित्त सचिव की टेबल पर समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती शिक्षकों की पत्रावली संख्या 09/ 07/20 धूल फांक रही है, शिक्षक फुटबॉल बना दिए गए हैं,आये दिन शासन प्रशासन और विभाग में कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला, स्नातक शैक्षिक प्रशिक्षित योग्यता होने के बाबजूद भी न्याय के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है, यदि योग्यताधारी शिक्षक बेसिक शिक्षा से एल टी में नहीं आते और प्राथमिक जूनियर हाईस्कूल में ही रहते तो उनको बिना मांगे चयन प्रोन्नत वेतनमान 4600 सौ रुपए से 4800 सौ रुपया मिल चुका होता मगर 12 वर्ष बाद भी 200 रुपया के लिए सम्मान और अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल हो गया है, अब गंभीर सवाल यह है कि मान्यता प्राप्त संगठन राजकीय शिक्षक संघ हुआ,हम इनके चंदा बटोरू सदस्य हुए,जायज मांग हमारी जस की तस है,आखिर हम न्याय पाने किसके दरबार में हाजिरी लगाने जाय,
इधर बताते चलें कि माननीय उच्च न्यायालय में जो शिक्षक चयन प्रोन्नत वेतनमान की याचिका दायर कर रहे हैं उनको शिक्षा सचिव और शिक्षा विभाग अवमानना की डर से चयन प्रोन्नत वेतनमान देता जा रहा है, जो शिक्षक जी जान से स्कूल में शिक्षण कार्य करते हैं और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के खिलाफ अपनी आर्थिक स्थिति के कारण माननीय न्यायालय नहीं जा पा रहे हैं उनके लिए सब अधिकारी नियम कानून बता रहे हैं, कुछ तो बजट का रोना भी रो दें रहे हैं जैसे अपनी तनख्वाह से देना पड़ रहा है,आखिर कुछ स्कूलों में समान शैक्षिक योग्यता धारी कार्यरत दो शिक्षकों के लिए भी दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है, चयन प्रोन्नत वेतनमान स्वीकृत के संदर्भ में,एक शिक्षक को दिया जाता है, दूसरे शिक्षक को नहीं दिया जाता, अधिकारियों की विवेक शून्यता नहीं है तो क्या है, ब्लाक, जिला और निदेशालय में भारी भरकम अधिकारियों की फौज किसलिए खडी कर रखी है जो न्याय ही नहीं कर सकते, आखिर उतराखण्ड के माननीय मुख्यमंत्री जी इस अन्याय का संज्ञान कब लेंगे इसी उधेडबुन में लगभग 1500 शिक्षक शिक्षा मंत्री जी और मुख्यमंत्री जी से न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वरना आमरण अनशन के अलावा कोई विकल्प अब शेष नहीं दिखता, स्वाभिमान नहीं तो जीना ही बेकार हो गया है।

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