Uttrakhand News:आज मनाई जा रही घी संक्रांति,जानें ओलगिया लोकपर्व का धार्मिक महत्व

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उत्तराखंड में मनाए जाने वाले तमाम पर्वों में घी संक्रांति का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है।हिंदू मान्यता के अनुसार हर साल जब नवग्रहों के राजा सूर्य कर्क राशि से निकलकर अपनी सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तो यह पावन पर्व मनाया जाता है।

🔹घी संक्रांति के पर्व पर स्नान, दान, पूजन का महत्व 

पंचांग के अनुसार आज 17 अगस्त 2023 को घी संक्रांति का पर्व, जिसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं, उसे बड़ी धूम-धाम से उत्तराखंड में मनाया जा रहा है. घी संक्रांति के पर्व पर स्नान, दान, पूजन आदि का क्या महत्व है? सुख-सौभाग्य को पाने के लिए इस दिन क्या उपाय करना चाहिए, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

🔹घी संक्रांति का धार्मिक महत्व

प्रकृति की गोद में बसे उत्तराखंड घी संक्रांति जिसे ओलगिया, घ्य संग्यान, घिया संग्यान आदि के नाम से जाना जाता है।मान्यता है कि एक समय में यहां के लोग इस पावन पर्व पर अपने राजाओं और प्रियजनों को घी और तमाम पकवान आदि की भेंट किया करते थे। शास्त्रों में भाद्रपद मास का घी को उत्तम बताया गया है क्योंकि इस दौरान जो खेतों में चारा पैदा होता है उसमें घास आदि के साथ अत्यंत ही दुर्लभ औषधियां भी पैदा होती हैं, जिसे गाय चारा के रूप में खाती है।इस घास में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व आ जाते हैं। जिसके बाद उस गाय के दूध से बना घी रामबाण औषधि के समान होता है। इसी गुणकारी घी को लोग अपने प्रियजनों के सौभाग्य और आरोग्य को बढ़ाने के लिए प्रदान करते हैं।

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🔹घी संक्रांति से जुड़ी पूजन परंपरा

उत्तराखंड में मनाई जाने वाली घी संक्रांति पर किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर स्नान और दान करने का बहुत ज्यादा महत्व है। मान्यता है कि इस पावन पर्व नदी तीर्थ पर जाकर आस्था की डुबकी लगाने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करने का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है।इस दिन घी का दान करने पर व्यक्ति को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन शुद्ध घी का सेवन करने पर पूरे साल व्यक्ति निरोगी और स्वस्थ रहता है।उसकी बुद्धि और बल में वृद्धि होती है।

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🔹उत्तराखंड का लोकपर्व है घी संक्रांति

उत्तराखंड में ओलगिया या फिर कहें घी संक्रांति के दिन कटोरी में घी पीने की परंपरा है।स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस दिन घी पीने से व्यक्ति स्वस्थ और सुखी रहता है, जबकि ऐसा नहीं करने पर उसे अगले जनम में घोंघा बनना पड़ता है। आज भी लोग इस दिन लोग अपने सगे संबंधियों को घी के साथ दही, मक्खन, और पकवान आदि विशेष रूप से भेंट करते हैं।इस पर्व के दौरान झोड़ा और चाचरी के गायन की परंपरा भी जुड़ी हुई है।