Uttrakhand News :देश की सुरक्षा में सीमा पर तैनात वीरभूमि उत्तराखंड का एक और लाल शहीद,मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सैनिक की शहादत को किया नमन दी श्रद्धांजलि
चमोली जिले में पोखरी ब्लाक स्थित करछुना गांव निवासी 17वीं गढ़वाल राइफल्स में तैनात हवलदार दीपेंद्र कंडारी जम्मू-कश्मीर में सीमा पर दुर्घटना में बलिदान हो गए।
सेना के अधिकारियों के अनुसार, हवलदार दीपेंद्र सीमा पर गश्त से लौट रहे थे, इसी दौरान उनका पांव फिसल गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गए।
💠अंतिम संस्कार आज
सैन्य अस्पताल में उपचार के दौरान उनका निधन हो गया। शनिवार को उनका पार्थिव शरीर देहरादून लाया गया और यहां मिलिट्री हास्पिटल की मोर्चरी में रखा गया है। उनका परिवार वर्तमान में देहरादून में शिमला बाईपास क्षेत्र में रहता है। रविवार को सैन्य सम्मान के साथ नयागांव श्मशान घाट पर उनकी अंत्येष्टि की जाएगी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जवान के बलिदान पर दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा ‘मां भारती की सेवा करते हुए जम्मू कश्मीर के तंगधार में 17 गढ़वाल रेजीमेंट में तैनात हवलदार दीपेंद्र कंडारी के आकस्मिक निधन का समाचार अत्यंत दु:खद है। ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति एवं शोकाकुल परिजनों को यह असीम कष्ट सहने की शक्ति प्रदान करने की कामना करता हूं।’
💠परिवार में कोहराम
दीपेंद्र के बलिदान होने की सूचना मिलते ही उनके परिवार में कोहराम मच गया। सगे-सबंधी समेत स्थानीय जन और गौरव सेनानी संगठन से जुड़े सदस्य स्वजन को सांत्वना देने घर पहुंचे। सैन्य अधिकारियों की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय सेना की 17वीं गढ़वाल राइफल्स के हवलदार दीपेंद्र कंडारी वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के तंगधार क्षेत्र में अग्रिम पोस्ट पर तैनात थे।
एक दिन पहले वह पोस्ट पर गश्त कर लौट रहे थे, इसी दौरान पांव फिसलने से वह गिरकर घायल हो गए। साथियों ने दीपेंद्र को करीब पांच किमी कंधे पर उठाकर बेस कैंप पहुंचाया। इसके बाद उपचार के लिए अस्पताल ले गए, लेकिन इसी दौरान उनका निधन हो गया। वह 23 वर्ष पूर्व सेना में भर्ती हुए थे। वह अपने पीछे पत्नी रीना कंडारी, बेटी अनुष्का, बेटा अभिनव व बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ गए हैं।
बलिदानी दीपेंद्र कंडारी के बड़े भाई पदमेंद्र कंडारी ने बताया कि उनका पूरा परिवार सेना के लिए समर्पित है। उनके पिता सुरेंद्र कंडारी भी सेवानिवृत्त सैनिक हैं, जबकि मां बीसा देवी गृहणी हैं। बलिदानी के दादा, परदादा, चाचा, ताऊ व भाई सेना में ही तैनात थे। पदमेंद्र कंडारी ने बताया कि वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनके दादा को वीर चक्र मिला था।