इसरो की IIRS रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा,जल विद्युत परियोजना की वजह से पूरे उत्तराखंड पर मंडरा रहा भूस्खलन का संकट

उत्तराखंड में लगातार हो रहे भूस्खलन ने आम आदमी सहित वैज्ञानिकों को भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। भूस्खलन की वजह से हो रहे नुकसान से हर आदमी परेशान हो गया था। बार-बार भूस्खलन के पीछे क्या उत्तराखंड की जल विद्युत परियोजनाओं हैं?इस बात का जबाव हर कोई चाहता था। भूस्खलन पर इसरो के अध्ययन पर कई चौंकाने वाले राज खुले हैं।
भूस्खलन की घटनाओं पर एक अध्ययन किया गया
पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के पर्वतीय इलाकों में भूस्खलन की घटनाओं का जल विद्युत परियोजनाओं ने संबंध नहीं है। इसरो-ISRO के देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग आईआईआरएस-IIRS के अध्ययन में यह पता चला है। ऊर्जा मंत्रालय ने पीआईबी के मार्फत बताया कि आईआईआरएस देहरादून ने जल विद्युत परियोजनाओं के आसपास के इलाकों में भूस्खलन की घटनाओं पर एक अध्ययन किया है।
प्रोजेक्ट को लेकर भूस्खलन पर रिपोर्ट तैयार की गयी
रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक का उपयोग करते हुए निर्माणाधीन और चालू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को लेकर भूस्खलन पर रिपोर्ट तैयार की है। आईआईआरएस ने एनएचपीसी के नौ पावर स्टेशन एवं परियोजनाओं पर यह अध्ययन किया। इसमें अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी लोअर, सिक्किम में तीस्ता-फाइव और रंगित, जम्मू-कश्मीर में सलाल, दुलहस्ती व उरी-टू, हिमाचल में चमेरा-वन व पार्बती-टू और उत्तराखंड में धौलीगंगा पिथौरागढ़ प्रोजेक्ट शामिल है।
अध्ययन में परियोजना के निर्माण की शुरुआत से 10 साल पहले परियोजना और पावर स्टेशन की वर्तमान स्थिति तक का मानचित्र तैयार किया गया। रिपोर्ट में बताया गया कि ज्यादातर मामलों में परियोजना के निर्माण से पहले देखे गए भूस्खलन क्षेत्र की तुलना में काफी कमी आई है। अध्ययन से पता चला है कि जलविद्युत परियोजनाओं के आसपास भूस्खलन गतिविधियां परियोजना की निर्माण गतिविधि से संबंधित नहीं हैं। टॉपोग्राफी, भूवैज्ञानिक स्थितियां और वर्षा भूस्खलन गतिविधियों का प्रमुख कारक या ट्रिगरिंग कारक हैं।