कुमाऊँ में भैया दूज के दिन देवताओं को नए अनाज से बने च्यूड़े चढ़ाने की है परम्परा

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बागेश्वर ज़िले में दीपावली पर्व पर भैया दूज के दिन देवताओं को नए अनाज से बने च्यूड़े चढ़ाने की वर्षों पुरानी परंपरा आज भी गांवों में देखने को मिलती है।

 

 

 

 

 

च्यूड़े बनाने के लिए गांवों में महिलाएं दीपावली से दो-चार दिन पहले से ही नए धान को पानी के एक बर्तन में भिगो देती हैं। गोवर्धन पूजा के दिन धान को पानी से निकालकर लोहे के एक तसले में भूना जाता है। फिर महिलाएं मूसलों से उसे ओखली में कूटती हैं, इससे च्यूड़े तैयार हो जाते हैं। फिर उन्हें छीटकर भैया दूज के दिन देवताओं को चढ़ाया जाता है।

 

 

 

 

 

भैया दूज के दिन गांवों में लोग अपने ईष्ट देवता, कुल देवता को भी च्यूड़े चढ़ाते हैं और वर्षभर अच्छी फसल की कामना करते हैं। इस दिन कुल पुरोहित यजमानों के घर जाकर च्यूड़े उनके सिरों में रखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। परिवार के बुजुर्ग भी बच्चों के सिरों में च्यूड़े रखकर उन्हें जी रया जागि रया… आदि आशीष के आंखरों के साथ सुखी, समृद्ध व उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

 

 

 

 

 

मायके में विवाहित बेटियों व ईष्ट-मित्रों को भी च्यूड़े दिए जाते हैं। भैया दूज के दिन आसपड़ोस में भी पकवानों के साथ एक दूसरे को च्यूड़े देने का रिवाज है। भौतिकतावाद की इस चकाचौध में आज भी पहाड़ों में यह परंपरा कायम है। लोग बेसब्री से इस दिन का इंतजार करते हैं।

रिपोर्ट हिमांशु गढ़िया

 

 

 

 

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