उत्तराखंड राज्य में हरेला पौराणिक पावन और लोकप्रिय पर्व है
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में हरेला पावन पर्व आज भी बिधि बिधान से मनाया जाता है। हरेला की शुरुआत सावन महीने के दस दिन पहले की जाती है। हरेला पावन पर्व की बुवाई अंधेरे में टोकरी या कोई गमले में सात अनाज या नौ अनाज के द्धारा साफ मिट्टी छान कर उस गमले या कोई टोकरी में नीचे रखा जाता है।
उसके बाद गमले या टोकरी में तीन बार मुट्ठी से मिट्टी को डाला जाता है। उसके बाद एक बार मुट्ठी से मिट्टी और उसके बाद नौअनाजो की मुट्ठी डाला जाता है।
अगर सात अनाजों का हरेला बनाया है तो सात बार मिट्टी और सात बार मिट्टी डाली जाती है।
अगर नौ अनाजों के द्धारा हरेला बोना है तो नौ बार नौ मुट्ठी और नौ बार बार मिट्टी डालना पड़ता है।
नौ दिन तक हरेला को अंधेरे में रखकर शुबे शाम पूजा करके पानी डालना पड़ता है।
नौ दिन में हरेला की गुड़ाई पूजा पाठ के साथ मात्र शक्ति उसे अंधेरे से प्रकाश में लाती है।
उत्तराखंड राज्य की हरेला पावन पर्व की संस्कृति लुप्त होती जा रही है। लेकिन अल्मोड़ा जिले के भैसियाछाना बिकास खंड रीठागाड पट्टी की हेमा भट्ट ने बिधि बिधान से हरेला पावन पर्व की गुड़ाई के साथ साथ पूजा अर्चना करके हरेला पावन पर्व की यादगार उत्तराखंड राज्य के युवा शक्ति की मात्र शक्ति को उजागर करने केलिए एक अपनी पहचान के नाम से हरेला की तस्वीर भेजी।।
प्रताप सिंह नेगी रीठागाडी दगड़ियों संघर्ष समिति के अध्यक्ष का कहना है। जैसे लोकप्रिय समाजिक कार्यकर्ती हेमा भट्ट ने हरेला पावन की बिधि बिधान से नौ दिन पूजा पाठ करके निराई गुड़ाई करके हरेला त्यौहार के लिए आने वाली मात्र शक्ति उजागर किया उसके लिए प्रताप सिंह नेगी ने हेमा भट्ट का धन्यवाद किया। हेमा भट्ट ने हरेला त्यौहार को बिधि बिधान से उजागर करने में कुमाऊं ही नहीं बल्कि उत्तराखंड राज्य की मात्र शक्ति को उजागर करने में अपना सहयोग प्रदान किया।नौ दिन तक हरेला को रखा जाता है उसके बाद दसवें दिन सावन के पहले दिन इसे पूजा पाठ के साथ काटा जाता है। माता पिता अपने बच्चों को हरेला पूजते हैं उनकी मनोकामना के लिए देवी देवताओं से दुवाएं मांगते हैं।इधर बहिन अपनी भाई की लंबी आयु व रक्षा केलिए भाई को हरेला त्यौहार की शुभकामनाएं देती है।भाई अपनी बहन को भेंट देते हैं।