अल्मोड़ा नगर की संस्कृति में पहली बार 48 घंटे बाद हुआ रावण का दहन आखिर ऐसा क्यों हुआ¿
ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगर के नाम से अपनी पहचान बनाने वाला अल्मोडा अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए पूरे विश्व मे अल्मोड़ा प्रसिद्ध है जहाँ पौराणिक काल से ही अपनी संस्कृति को बड़े सौहार्द के मनाता आया है
पर इस बार 5 अक्टूबर 2022 के दशहरे को अलमोड़ा के संस्कृति कर्मी कभी नही भूल पाएंगे और आने वाली जो पीढ़ी है उसको इसका क्या संदेश गया ये अपने आप मे एक बड़ा सवाल है
दरसल अल्मोड़ा में 1865 से रावण और उसके परिवार के पुतलों को बनाने की परम्परा शुरू हुए जो वर्तमान तक चली आयी है रावण परिवार के पुतलों का नगर के अनेक मोहल्लों में निर्माण कर दशहरे के दिन उनका दहन किया जाता है
इस वर्ष भी 22 पुतलों का निर्माण किया गया जिनको पूरे बाज़र में घुमाकर स्थानीय स्टेडियम में उनका दहन किया गया पर अहम और राजनीति के चक्कर मे अल्मोड़ा की संस्कृति व धार्मिकता को तार-तार कर दिया गया
खैर रावण का दहन तो कर दिया गया पर अल्मोड़ा की संस्कृति और धामिर्कता का जो सन्देश गया उससे आने वाले पीढ़ी को क्या संदेश मिला ये सोचनीय विषय है जो भी हुआ वो उससे आम जनता में एक बहुत बड़ा नेगेटिव संदेश गया जिससे अल्मोड़ा की संस्कृति व धार्मिकता को एक बहुत बड़ी ठेस पहुंची है
जबकी दशहरे के आयोजन के लिए दशहरा समिति ने एक बड़ा आयोजन की तैयारी कर उसको रोमांचक भी बनाया औऱ पुतला समितियों द्वारा इतनी मेहनत कर पुतलों का निर्णाण कर उनको आकषर्क बनाया गया पर सवाल ये उठता है कि आख़िर क्यों इतना बड़ा विवाद हो गया कि रावण को वापस लाकर 48 घंटे बाद जलाया गया क्या ये अल्मोड़ा के इतिहास ,संस्कृति, और धामिर्कता के लिये अच्छा हुआ इतनी मेहनत और लगन के बाद फिर ये क्यों
****सवाल तो पूछा जाएगा आखिर किसकी जिम्मेदारी***