अल्मोड़ा में जंगलों को बचाने की पहल 1अप्रैल को मनाया जाएगा प्रथम ओण दिवस

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अल्मोड़ा::जंगलों में आग लगने की घटनाओं के बाद उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में जंगलों की हालत इन तस्वीरों के माध्यम से देखी/समझी जा सकती है। घास, पीरूल,पत्ते, छोटे पौधे, झाड़ियों, कीड़े, मकोड़े आदि को निगलने के बाद दावानल तो शांत हो जाता है परंतु 40 से 80 डिग्री का कोण बना रही पहाड़ियों पर वर्षा जल के रुकने की सारी संभावनाएं भी साल दर साल कम होती जाती हैं साथ ही भूस्खलन के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार होती है वर्षा ऋतु बारिश की बूंदें धरती से टकराती हैं तो उन बूंदों को रोकने, सहेजने वाली परिस्थितियों के अभाव में सारा का सारा पानी तेजी से पहाड़ियों से उतरकर गाड़, गधेरों के रास्ते नदियों में चला जाता है और हर बार फिर से पहाड़ प्यासे ही रह जाते हैं।
पेड़ों से गिरने वाली पत्तियां, मिट्टी, घास- फूस आदि से मिलकर फिर सड़कर ह्यूमस तैयार करती हैं जो ईको सिस्टम के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यही ह्यूमस वर्षा जल को सहेजने और उसे भूजल में परिवर्तित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , जमीन की ऊपरी ठोस परत को भुरभुरा करने में भी इसकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है और इन सबके साथ कीड़े, मकोड़े जो पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं के भोजन और आवास की व्यवस्था करने में तथा जैव-विविधता को संरक्षित और संवर्धित करने में इसकी अनन्य भूमिका है ।बेहद दुख की बात यह है कि साल दर साल बढ़ती वनाग्नि की घटनाएं सालों से जमा महत्वपूर्ण ह्यूमस को नष्ट करने के साथ साथ भविष्य में भी ह्यूमस पैदा होने की संभावनाओं को भी कम करते जा रही हैं परन्तु वनाग्नि अभी भी योजना बनाने वालों तथा विशेषज्ञों के लिए चिंता या चिंतन का विषय नहीं बन पाया है।
वर्ष 1990के दशक के बाद से ही वनाग्नि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के जल स्त्रोतों, जैव-विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र को नुक्सान पहुंचाने का काम कर रही है परन्तु जल संरक्षण या जल संवर्धन के लिए बनायी जा रही कार्ययोजनाओं में वनाग्नि की कोई चर्चा तक नहीं है वनाग्नि से निपटना या इस पर काबू पाने के उपाय करना तो बहुत दूर की बात है।
सूख रही कोसी आदि नदियों को बचाने के लिए वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं द्वारा जो बहुचर्चित कार्ययोजनाएं बनायी गई हैं उनका अध्ययन करने पर आप पायेंगे कि चाल खाल बनाकर वर्षा जल संग्रहण और पौधारोपण दो ही बातों पर सारा जोर है। जंगलों की आग या जंगलों के अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन को रोकने के बारे इन कार्ययोजनाओं में कोई बात नहीं कही गई है जबकि तथ्य यह है कि कोसी आदि गैर हिमानी नदियों के सूखने और बरसाती नदियों में बदलने के लिए वनाग्नि और मिस्रित जंगलों का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। हालांकि वर्षा जल संग्रहण के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता है परन्तु हरे भरे,घने जंगलों में वर्षा जल के भूजल में बदलने की जो प्रक्रिया , ह्यूमस के माध्यम से सदियों से , अपने आप होती आ रही है क्या उसका स्थान ढालदार पहाड़ियों में बनाए जा रहे चाल खाल गड्ढे ले पाएंगे ? ऐसे में जंगलों को आग से बचाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
।कोसी नदी के मुख्य रिचार्ज जोन स्याही देवी शीतलाखेत आरक्षित वन क्षेत्र में मौजूद जल स्त्रोतों और जैवविविधता को बचाने के लिए वर्ष 2003-4 से चलाते जा रहे जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान को आगे बढ़ाते हुए ग्रामीणों, महिला मंगल दलों द्वारा आगामी 1 अप्रैल को ओण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है। ग्राम सभा सूरी तथा मटीला में आयोजित अलंग अलग बैठकों में जंगलों की आग पर प्रभावी नियंत्रण पाने के उपायों पर विचार विमर्श किया गया। ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली के सलाहकार गजेन्द्र पाठक ने कहा कि ओण की अनियंत्रित आग गर्मियों में वनाग्नि की घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है इसलिए ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित करने की जरूरत है। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि ओण जलाने की कार्रवाई को किसी भी हालत में हर वर्ष 31 मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा ताकि अप्रैल, मई,और जून के महीनों में जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके।
ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध करने तथा जंगलों की आग से जल स्त्रोतों, जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र को हो रहे नुकसान के बारे में जागरूकता पैदा करने हेतु इस साल 1 अप्रैल को ओण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।
बैठक में तय किया गया कि ओण दिवस के अवसर पर मटीला, गांव के पंचायत घर से ग्राम सभा सूरी तक जागरूकता रैली निकाली जाएगी जिसमें मटीला, खरकिया, पड्यूला, सूरी, गड़सारी, डोल,बरसीला, पड्यूला तथा जाला गांवों की महिलाओं तथा ग्रामीणों द्वारा प्रतिभाग किया जायेगा। बैठक में शामिल होने के लिए प्रभागीय वनाधिकारी अल्मोड़ा वन प्रभाग को आमंत्रित किये जाने का निर्णय भी लिया गया। ओण दिवस के आयोजन में ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, अल्मोड़ा, नवनीति सेवा केंद्र, सूरी,प्लस एप्रोच फाउंडेशन, नई दिल्ली और नौला फाउंडेशन द्वारा सहयोग किया जा रहा है।
बैठक में आशा देवी, इंद्रा देवी, भगवती भंडारी, दुर्गा भंडारी, दीपा आर्या,सोनिया बिष्ट, अनिता कनवाल,बबली परिहार, कल्पना कनवाल, रूचि पाठक, मुन्नी भंडारी,पूजा बिष्ट, मनीषा भंडारी, सुनीता बिष्ट, गरिमा, प्रीति, आस्था हरीश सिंह,रमेश भंडारी, प्रताप सिंह, गोपाल सिंह, सुंदर लाल,रवि परिहार चंदन भंडारी,सहित दर्जनों की संख्या में सूरी,मटीला, गड़सारी, पड्यूला, डोल, बरसीला, खरकिया की महिलाओं तथा युवाओं द्वारा प्रतिभाग किया गया।

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