नकल विरोधी कानून के लिए निकली आभार रैलिया बनी सरकार की नाकामी की प्रतीक :: रमेश चंद्र पाण्डे,

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रमेश चंद्र पाण्डे,
रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर
एवं संस्थापक अध्यक्ष,
उत्तराखण्ड कार्मिक एकता मंच

 

 

नकल के लिए जो जवाबदेह हैं उन्होंने ही पुटअप किया नकल विरोधी कानून का प्रस्ताव ::
कानून का भय दिखाकर नहीं हो सकता है रामराज्य :: देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून लाने के लिए निकाली गई जिन आभार रैलियों से उत्तराखण्ड सरकार गदगद है उन रैलियों से आम जनमानस हतप्रभ है और प्रबुद्ध वर्ग की नजरों में ये रैलियां सरकार की नाकामी की प्रतीक हैं ।

 

 

 

दरअसल सरकार जिसे देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून बता रही है उसकी खानातलाशी करने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि ये देेश का ही नहीं बल्कि दुनियां का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून है । सरकार के पास इस कानून का प्रस्ताव कुुछ माह पूर्व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से आया और अगर यह इतना ही बेहतरीन है तो इसके लिए सबसे पहले इस आयोग का आभार व्यक्त किया जाना चाहिए ।

 

 

 

 

वर्ष 2014 मे अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन होने के बाद 2015 में जो पहली भर्ती परीक्षा आयोजित हुई उसी में नकल और पेपर लीक हो गया उसके बाद इस आयोग द्वारा जो भी भर्ती परीक्षा आयोजित कराई सब धांधली की भेंट चड गई । गोपनीयता और पारदर्शिता के साथ भर्ती परीक्षा आयोजित कराने में नाकाम रहा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग जब राज्य के समूचे जनमानस का विश्वास खो चुका था तब इसी आयोग द्वारा मीडिया के सामने यह भी कहा था कि परीक्षा में पेपर लीक और नकल जैसी धांधलियों के पीछे राजनीतिक दबाव भी रहता है और इसे रोकने के लिए आयोग की ओर से सरकार को एक ठोस प्रस्ताव भेजा गया है ।
आयोग द्वारा कुुछ माह पूर्व नकल रोकने के लिए जो प्रस्ताव सरकार को भेजा था ,

 

 

 

 

 

सरकार ने अचानक उसे यथावत स्वीकार कर लिया । 10 फरवरी को राज्यपाल के अनुमोदन के बाद 11 फरवरी को सरकारी गजट नोटिफिकेशन भी जारी हो गया और इस अध्यादेश के जारी होते ही सरकार अपनी पीठ थपथपाते हुए दावा करने लगी कि अब नकल नहीं होगी । इस दावे के साथ ही राज्य में शुरु हो गया सत्तारूढ दल द्वारा जगह जगह आभार रैलियों के आयोजन का सिलसिला ।

 

 

 

 

 

इस कानून को लाए जाने की टाइमिंग भी गौर करने वाली है । अप्रत्याशित रूप से यह अध्यादेश तब लाया गया जब भर्तियों में हुई धांधली को लेकर आन्दोलित बेरोजगारों को लाठियों से लहुलुहान करने के बाद गिरफ्तार कर जेल डाल दिया था। 9और 10 फरवरी को बेरोजगारों के आन्दोलन को कुचलने से हुई चौतरफा निन्दा के बीच सरकार ने आनन फानन में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से आये नकल विरोधी कानून के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी और सबका ध्यान बंटाने के लिए ढोल पीटते हुए यह दावा करना शुरु कर दिया कि अब नकल नहीं होगी ।

 

 

 

 

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह कानून वास्तव में नकल रोकने में कारगर है ?
इस सवाल की तह में जाने पर सबसे बड़ा सवाल यह आया कि आखिर इस अध्यादेश की जरुरत क्यों आन पड़ी ?
गोपनीयता एवं पारदर्शिता के साथ परीक्षा सम्पन्न कराने के लिए संवैधानिक व्यवस्था में पहले से ही जो विधिक दायित्व निर्धारित हैं उनका निर्वहन सत्यनिष्ठा के साथ सही ढंग से हुआ होता तो पेेपर लीक जैसी ये आपराधिक घटनाएं घटित ही नहीं होती । लिहाजा सबसे पहली जरुरत उसे चिन्हित करने की है जिसके द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन करने में लापरवाही की गई । इससे इस बात का पता स्वत: ही चल जायेगा कि आखिर किसकी लापरवाही से यह आपराधिक घटना घटित हुई ?

 

 

 

 

असली जवाबदेह को कटघरे में डाले बिना चाहे नकल रोकने के लिए ऐसे कितने ही सख्त कानून बन जाएं उसे असल मुद्दे से ध्यान भटकाने वाले के साथ ही ढकोसला ही कहा जायेगा । लिहाजा जरुरत है सिस्टम के अनुरूप जिसके जो दायित्व हैं उनमें अगर वह खरा नहीं है तो उसके खिलाफ जवाबदेही तय कर सख्त कार्यवाही करने की है ।
अधीनस्थ सेवा चयन आयोग जैसी स्वायत्तशासी संस्था में भर्ती परीक्षा में हुई धांधली के लिए पहली जवाबदेही अध्यक्ष, सचिव व परीक्षा नियन्त्रक की है । ऐसे में जो सीधे जवाबदेह हैं उन्हीं के द्वारा तैयार किये गये नकल विरोधी कानून के ड्राफ्ट पर जब सरकार ने आनन-फानन में मुहर लगाकर “अब नकल नहीं होगी” का दावा करते हुए ढोल पीटना शुरु कर दिया तो सवाल तो उठने ही थे ।

 

 

 

 

 

न्याय व्यवस्था का सिद्धांत के अनुसार भी कानून की अवहेलना की माफी नहीं होती है । जो सिस्टम पहले से है उसे फुलप्रुफ करने के बजाय यदि
कानून का भय दिखाकर सिस्टम में सुधार की बात की जाय तो यह सभ्य समाज के लक्षण नहीं हैं । राम के नाम से सत्तासीन सरकार को तो इस पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है कि कानून का भय दिखाकर रामराज्य कदापि स्थापित नहीं हो सकता है ।

 

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