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उत्तराखंड के वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने रविवार को इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा बजट सत्र के दौरान उनके एक विवादास्पद भाषण के कुछ हफ़्तों बाद आया है। इस भाषण में उन्होंने पहाड़ी लोगों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि राज्य सिर्फ पहाड़ियों के लिए नहीं है। विपक्ष ने भाजपा पर पहाड़ी निवासियों की उपेक्षा और अपमान करने का आरोप लगाया था। इसके बाद राज्य सरकार बैकफुट पर आ गई थी। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, अग्रवाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आवास पर अपना इस्तीफा सौंपा।

फरवरी में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट की एक टिप्पणी पर प्रेमचंद अग्रवाल ने गुस्से में प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने उत्तराखंड राज्य के लिए इसलिए संघर्ष नहीं किया था कि ‘पहाड़ी’ और ‘देसी’ के बीच भेदभाव किया जाए। अग्रवाल ने विपक्षी विधायकों के साथ बहस के दौरान एक आपत्तिजनक शब्द का भी इस्तेमाल किया था। उनकी इस टिप्पणी से लोगों में, खासकर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों में काफी गुस्सा था।

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मंत्री ने अपनी टिप्पणी पर खेद व्यक्त किया था। भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने भी उन्हें तलब किया था और संयम बरतने की हिदायत दी थी। यह घटना राज्य की राजनीति में एक बड़ा विवाद बन गई थी। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की थी। कांग्रेस ने मांग की थी कि प्रेमचंद अग्रवाल को मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर विधानसभा में हंगामा भी किया था। इस घटना ने पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों के बीच के संवेदनशील मुद्दे को फिर से उठा दिया था। भाजपा के लिए यह एक बड़ी शर्मिंदगी का कारण बना।

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इस घटना से भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा है। पार्टी नेतृत्व को इस मामले में जल्दी कार्रवाई करनी पड़ी। अग्रवाल के इस्तीफे को इसी कड़ी में देखा जा रहा है। यह देखना होगा कि इस घटना का आने वाले चुनावों पर क्या असर पड़ता है। क्या जनता इस घटना को भूल जाएगी या फिर भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस घटना ने उत्तराखंड की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।

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