Uttrakhand News:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की कुर्सी खतरे में,भाजपा हाईकमान उनके खिलाफ जल्द ले सकता है एक्शन

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उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक कैबिनेट मंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ते दिखाई दे रही है। संसदीय कार्य एवं शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है।

🌸भाजपा हाईकमान उनके खिलाफ जल्द एक्शन ले सकता है।

कोटद्वार में शुक्रवार को गढ़वाल भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी एवं गढ़वाल सांसद बलूनी ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि वह उचित फोरम पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर चुके हैं।

विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट के साथ तीखी नोंकझोंक के दौरान मंत्री ने पहाड़वासियों के लिए अभद्र शब्दावली का प्रयोग किया। इस पर उत्तराखंड में जगह-जगह आक्रोशित लोगों ने प्रदर्शन किया।

गुरुवार को ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में मंत्री प्रेमचंद के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर लोगों ने जुलूस निकाला था। सूत्रों ने बताया की दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भी हाईकमान के समक्ष इस संबंध में पूरी बात रखी।

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वहीं शुक्रवार को आए सांसद बलूनी के बयान से संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा हाईकमान संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद पर जल्द कार्रवाई कर सकती है।

राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी भाजपा एवं गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि वास्तव में यह विषय (प्रेमचंद प्रकरण) बहुत ही पीड़ादायक और दुर्भाग्यपूर्ण है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता के रूप में मेरी कुछ मर्यादा है। मैंने उचित फोरम पर अपने कर्तव्यों और दायित्वों का मजबूती से निर्वहन कर दिया है।

🌸कैबिनेट में चार पद हैं खाली

सूत्रों का कहना है कि यदि प्रेमचंद पर जल्द एक्शन होता है तो कैबिनेट के अन्य चार खाली पद भी अभी भरे जा सकते हैं। कैबिनेट विस्तार में हरिद्वार और नैनीताल जिले से प्रतिनिधित्व मिलना तय माना जा रहा है। इन दोनों बड़े जिलों से अभी तक धामी कैबिनेट में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

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🌸बीएल संतोष ने लिया अपडेट

सूत्रों ने बताया कि भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने मुख्यमंत्री धामी से पूरे घटनाक्रम का अपडेट भी लिया। हाईकमान भी संसदीय कार्य मंत्री के इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करने से काफी नाराज बताया जा रहा है। विदित है कैबिनेट मंत्री रहते प्रेमचंद अग्रवाल कई बार विवादों में आ चुके हैं, इससे पार्टी संगठन को फजीहत का सामना करना पड़ता है।

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