पीएम मोदी का हिरोशिमा में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में हुआ भव्य स्वागत, जापान के प्रधानमंत्री मारापे ने छुए पैर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जापान के हिरोशिमा शहर में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन के एक सत्र में कहा कि वह यूक्रेन में मौजूदा हालात को राजनीति या अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि मानवता एवं मानवीय मूल्यों का मुद्दा मानते हैं।
प्रधानमंत्री ने यथास्थिति बदलने के एकतरफा प्रयासों के खिलाफ एक साथ मिलकर आवाज उठाने की पुरजोर वकालत की और कहा कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा एक-दूसरे की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।
प्रधानमंत्री की टिप्पणियां यूक्रेन पर रूसी हमले और पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में आई हैं। मोदी ने अपने संबोधन में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से शनिवार को हुई वार्ता का भी उल्लेख किया और कहा कि इस परिस्थिति के समाधान के लिए, भारत से जो कुछ भी बन पड़ेगा, हम यथासंभव प्रयास करेंगे।
प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी जेलेंस्की की जी-7 समूह की बैठक को संबोधित करने के बाद आई, जिसमें उन्होंने रूसी आक्रमण के खिलाफ सुरक्षा प्रयासों में दुनिया के देशों से यूक्रेन को समर्थन देने की अपील की।
पापुआ न्यू गिनी के पीएम ने छुए पांव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के अपने दौरे के दूसरे चरण में रविवार को पापुआ न्यू गिनी पहुंचे। पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया और सम्मान के तौर पर पैर छुए। यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पापुआ न्यू गिनी की पहली यात्रा है। आमतौर पर पापुआ न्यू गिनी सूर्यास्त के बाद आने वाले किसी भी नेता का औपचारिक स्वागत नहीं करता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह अपवाद रहा और उनका औपचारिक स्वागत किया गया। मोदी ने ट्वीट किया, ‘स्वागत करने के लिए प्रधानमंत्री जेम्स मारापे का आभारी हूं। यह आदर-सम्मान बहुत ही खास है, जिसे मैं हमेशा याद रखूंगा।’
कहा- संयुक्त राष्ट्र 21वीं सदी के अनुरूप नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े वैश्विक संस्थानों में सुधार की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि यदि ऐसे संस्थान मौजूदा विश्व की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, तो ये महज ‘चर्चा का मंच’ बनकर रह जाएंगे। मोदी ने कहा कि पिछली सदी में गठित संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद जैसे संस्थान इक्कीसवीं सदी की व्यवस्था एवं वास्तविकता के अनुरूप नहीं हैं। इन संस्थानों को ग्लोबल साउथ (अल्प विकसित देशों) की आवाज भी बनना होगा। वरना हम संघर्षों को खत्म करने पर सिर्फ चर्चा ही करते रह जाएंगे। हिरोशिमा में जी-7 समूह के एक सत्र को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत ही शांति स्थापित करने की कल्पना से की गयी थी, ऐसे में यह आज संघर्ष को रोकने में सफल क्यों नहीं होता?
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