सांसद अजय टम्टा ने राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा परिसर में विचार-विमर्श और वैज्ञानिकों के साथ अनुभव साझा किए
अल्मोड़ा।माननीय सांसद श्री अजय टम्टा जी कल 1 मई को गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के कोसी कटारमल अल्मोड़ा परिसर में पधारें तथा संस्थान के निदेशक प्रो सुनील नौटियाल तथा संस्थान के वैज्ञानिकों से उनके कार्य के बारे में विस्तार से चर्चा की। संस्थान की विभिन्न कार्यकलापों एवं हिमालय क्षेत्र में जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों के द्वारा किए जाने वाले व्यापक कार्यों का विस्तृत उल्लेख किया।
इसी क्रम में माननीय सांसद श्री अजय टम्टा जी ने भी हिमालय क्षेत्र में उनके व्यापक अनुभव को संस्थान के वैज्ञानिकों के साथ साझा किया तथा विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं पर जिन पर आज के समय को देखते हुए शोध की अपार संभावनाएं हैं उन विषयों पर शोध करने के लिए जोर डाला तथा कैसे हिमालयी समुदायों को जलवायु परिवर्तन के दौर में जलवायु अनुकूलित बनाया जा सके तथा क्षेत्र की जैव संरक्षण के साथ-साथ अतिरिक्त दोहन एवं प्रवासन को रोका जा सके इस पर गहन चिंतन एवं मंथन किया गया।
डॉ इंद्र दत्त भट्ट ने इस चर्चा के दौरान संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कार्यों को विस्तार से बताया तथा माननीय सांसद श्री अजय टम्टा जी के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड में कैटरपिलर फंगस जिसे की यारसा गुंबा के नाम से भी जाना जाता है पर एक अनुसंधान परियोजना को प्रस्तुत किया गया है।
यह शोध परियोजना उच्च ऊंचाई एवं वृक्ष रेखा पर आधारित हिमालई समुदायों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा जोकि हिमालय क्षेत्र में उपस्थित वन रेखा जो कि एक पर्यावरण दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्र है उनके संरक्षण एवं आजीविका में सहयोग प्रदान करेगा। डॉ महेंद्र सिंह लोधी ने हिमालय के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे कि लद्दाख एवं हिमाचल एवं अन्य क्षेत्र जहां पर तापमान बहुत कम रहता है वहां पर खनिज संसाधन के सहायता से एवं सौर निष्क्रिय ताप तकनीक से आवासीय संरचनाओं के निर्माण पर शोध परियोजना पर प्रकाश डाला।
इसी क्रम में श्री अजय टम्टा जी ने हेमक्रिएट के उपयोग पर शोध करने की बात कही तथा इसको भी सौर निष्क्रियता परियोजना में सम्मिलित करने पर जोर डाला हेम क्रिएट के द्वारा संस्थान की संरचना में मजबूती टिकाऊ पन के साथ-साथ घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है अतः उन्होंने हेम क्रिएट के के प्रयोग पर शोध करने की बात कही| हेम्पक्रीट को भांग के तनु को चूने के साथ मिलाकर सीमेंट के विकल्प के रूप में जोकि एक पर्यावरण हितैषी तकनीक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है
डॉ सुमित राय मृदा वैज्ञानिक पर्यावरण आकलन एवं जलवायु परिवर्तन केंद्र ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर माननीय श्री अजय टम्टा जी के साथ विस्तार में चर्चा की तथा संस्थान के प्लास्टिक अपघटन एवं प्रबंधन पर किए जाने वाले कार्यों की परियोजनाओं के बारे में चर्चा की माननीय श्री अजय टम्टा जी ने मल्टी लेयर प्लास्टिक से होने वाले समस्याओं के निराकरण पर संस्थान को अधिकाधिक शोध शोध करने को कहा तथा कैसे इन अपशिष्ट को संसाधन में बदला जा सकता है इन बारे में मार्गदर्शन किया।
डॉ खिलेंद्र कनवाल ने संस्थान के हिमाचल क्षेत्रीय केंद्र द्वारा रानी मधुमक्खी एवं अन्य जंगली मधुमक्खियों के पालन पर प्रकाश डाला तथा संस्थान की कई सफलताओं की कहानियों को माननीय श्री अजय टम्टा जी के साथ साझा किया जिसमें संस्थान ने हिमाचल एवं उत्तराखंड के कई गांव को तथा कई किसानों को रानी मनु मधुमक्खी के पालन एवं शहद उत्पादन के द्वारा किस प्रकार लेंस के परिवर्तन किया गया इस पर प्रकाश डाला।
डॉ सुरेश राणा एवं डॉ आशीष पांडे ने क्रमशः लद्दाख एवं सिक्किम क्षेत्रीय केंद्रों में संस्थान के किए जाने वाले कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा संस्थान में विभिन्न ग्रामीण तकनीकीयो जिनसे की ग्रामीण आजीविका तथा पारिस्थितिकी सुरक्षा उत्पन्न हो सके।
माननीय श्री अजय टम्टा जी द्वारा संस्थान के कार्यों की काफी सराहना की गई तथा माननीय निदेशक महोदय प्रोफेसर सुनील नौटियाल से हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी सुरक्षा एवं क्षेत्रीय समुदायों के आजीविका संवर्धन के लिए उत्पाद आधारित अनुसंधान के लिए अपील की जिसको निदेशक महोदय डॉक्टर नौटियाल ने सहर्ष स्वीकार किया तथा यह आश्वासन दिया की राष्ट्रीय हिमालई पर्यावरण संस्थान सदैव इसी तत्परता के साथ भारतीय हिमालय क्षेत्र के सतत विकास के लिए अनुसंधान करता रहेगा।