केदारनाथ यात्रा मार्ग पर अबतक नब्बे खच्चर और साठ घोड़ों की मौत, मालिकों के खिलाफ कुल 16 एफआईआर दर्ज

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उत्तराखंड में केदारनाथ यात्रा के दौरान अबतक 90 खच्चरों और 60 घोड़ों की मौत हो चुकी है। इस साल 25 अप्रैल को केदारनाथ धाम के कपाट खोले गए थे। बता दें, पिछले साल इसी अवधि में 194 घोड़ों और खच्चरों की मौत हो गई थी।इन घोड़ों और खच्चरों का उपयोग सवारियां और सामान ढ़ोने में किया जाता है। 

🔹घोड़ा-खच्चर मालिकों के खिलाफ कुल 16 एफआईआर भी दर्ज

गढ़वाल क्षेत्र के एक पशु कार्यकर्ता यश गुप्ता ने कहा, “हालांकि पिछले साल की इतने दिनों में हुई मौतों की तुलना में यह संख्या कम है, लेकिन यात्रा के हर दिन के साथ इसमें बढ़ोतरी हो रही है और जानवरों की लगातार मौत हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए नए तरीके निकालने की जरूरत है। रुद्रप्रयाग के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी अशोक कुमार ने कहा कि अनफिट पाए गए कुल 300 घोड़ों और खच्चरों को यात्रा मार्ग पर संचालन से प्रतिबंधित कर दिया गया है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत 213 घोड़ा-खच्चर मालिकों के खिलाफ कुल 16 एफआईआर भी दर्ज की गई हैं।

🔹इस साल  घोड़ों और खच्चरों की मृत्यु दर में आई कमी

वहीं, खच्चरों और घोड़ों की मौत पर पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने कहा कि रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन, पशुपालन और अन्य संबंधित विभागों के ठोस प्रयासों के चलते इस साल केदारनाथ यात्रा मार्ग पर घोड़ों और खच्चरों की मृत्यु दर में कमी आई है। पिछले साल कि तुलना में सुधार हुआ है। मंत्री ने कहा,”हम यात्रा मार्ग पर घोड़ों और खच्चरों के कल्याण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जिला प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और निरंतर निगरानी के माध्यम से घोड़ों और खच्चरों की मृत्यु दर को न्यूनतम रखने और केदारनाथ यात्रा को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।” 

उन्होंने बताया कि यात्रा मार्ग पर विभागीय पशु चिकित्सकों द्वारा सोनप्रयाग में 444, गौरीकुंड में 1721, लिनचोली में 398 तथा केदारनाथ में 327 सहित कुल 2890 घोड़ों एवं खच्चरों का उपचार किया गया है। यह व्यवस्था पहली बारी की गई है। जबकि केदारनाथ रूट पर उपयोग में लाए जा रहे सभी खच्चरों और घोड़ों की चिकित्सकीय जांच की गई है।

अधिकारियों ने कहा कि जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग ने पशु चिकित्सकों की संख्या चार से बढ़ाकर सात कर दी है। डॉक्टरों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए सोनप्रयाग, लिनचोली और केदारनाथ मंदिर में चौबीसों घंटे तैनात किया गया है। इसके साथ ही साथ डॉक्टर इस बात की निगरानी भी रखते हैं कि कोई भी संचालक लापरवाही न बरते और न ही किसी पशु के साथ क्रूरता हो। 

अशोक कुमार, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी रुद्रप्रयाग ने कहा, “इस वर्ष पशुपालन विभाग द्वारा एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की गई थी। यात्रा पर खच्चर और घोड़ों के संचालन में शामिल सभी अधिकारियों को इसका सख्ती से पालन करने और पशु चिकित्सा कर्मियों की संख्या सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे। चौबीसों घंटे जानवरों की सेहत की निगरानी के लिए यात्रा मार्ग पर पांच पैरा पशु चिकित्सकों के साथ डॉक्टरों की संख्या पिछले साल के चार से बढ़ाकर सात कर दी गई है।”

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