Uttarakhand News:तिमूर के खेती कर आत्मनिर्भर बना पहाड़ का यह व्यक्ति,कई आयुर्वेदिक औषधियों के लिए हो रही डिमांड

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देवभूमि उत्तराखण्ड को प्राकृतिक रूप से हसीन वादियों के साथ साथ कुदरत ने इसे विभिन्न जड़ी-बूटियों, आदि की भरपूर सौगात दी है।  आज हम आपको राज्य के एक और ऐसी ही हस्ती से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने न केवल इस बात को सही साबित कर दिखाया है। बल्कि राज्य के अन्य युवाओं के साथ ही सरकारों को भी स्वरोजगार की नई राह दिखाई है।

🔹तिमूर को बनाया स्वरोजगार 

मूल रूप से राज्य के बागेश्वर जिले के दूरस्थ क्षेत्र रमाड़ी गांव के रहने वाले बलवंत सिंह कार्की की, जिन्होंने तिमूर उगाकर स्वरोजगार की राह चुनी है। यह उनके मेहनत लगन और नायाब सोच का ही परिणाम है कि तीन साल पहले लगाए गए उनके तिमूर के पौधे न केवल अब फल देने लगे हैं। बल्कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी लगातार मजबूत हो रही है।

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🔹तिमूर के चार सौ से अधिक लगाए पौधे 

आमतौर पर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में पाए जाने वाले तिमूर का उपयोग न केवल दंतमंजन बनाने के साथ ही मसालों में किया जाता है बल्कि इसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियों में भी होता है। कुछ साल पहले चमोली जिले के पीपलकोटी और फिर पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी में इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ था, जिसके बारे में सुनकर बागेश्वर जिले के रमाड़ी गांव के बलवंत सिंह कार्की ने अपने बगीचे में तिमूर के चार सौ से अधिक पौधे लगाए थे।

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🔹बाजार में बढ़ रही डिमांड 

आज तीन साल बाद उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। दरअसल उनके 11 पौधे न केवल फल देने लगे हैं बल्कि इससे रमाड़ी गांव तिमूर का व्यावसायिक उत्पादन करने वाला उत्तराखण्ड का तीसरा स्थान भी बन गया है। अपनी इस सफलता को बयां करते हुए बलवंत बताते हैं कि हाल ही में उन्होंने मासी (चौखुटिया) की एक संस्था को हजार रुपये किलो के हिसाब से दो किलो तिमूर के बीज के छिलके बेचे। जबकि एक किलो छिलका उन्होंने स्थानीय बाजार में बेचा। वह बताते हैं कि न केवल तिमूर के बीज का छिलका सबसे महंगा बिकता है बल्कि इसके पत्ती, लकड़ी भी अच्छे दामों में बिकती है।