लोक सेवा आयोग में संवैधानिक व्यवस्था का परिपालन नहीं हुआ सही तरीके से –पाण्डे

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विकास के लिए जवाबदेही तय किये जाने की मांग को लेकर मुखर उत्तराखण्ड कार्मिक एकता मंच के संस्थापक अध्यक्ष एवं रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चंद्र पाण्डे ने कहा कि किसी भी राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए सुदृढ एंव पारदर्शी व्यवस्था का होना जरुरी है और व्यवस्था रुपी गंगा का उदगम स्थल विधानसभा है ।

 

 

 

 

 

यदि विधानसभा में ही इसका उल्लंघन कर संंवैधानिक व्यवस्था पर चोट पहुंचाई जायेगी तो इसके चौतरफा परिणाम अस्थिरता और उथल-पुथल करने वाले होंगे । कहा कि इसी वजह से उत्तराखण्ड देश का ऐसा राज्य बन गया है जिसकी विधानसभा में राज्य गठन के बाद हुई सभी नियुक्तियां अवैध हों और जहां विभिन्न श्रेणी की भर्ती करने के लिए गठित लोक सेवा चयन आयोग तथा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से समूचे जनमानस का विश्वास उठ चुका है ।

 

 

 

 

 

 

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड विधानसभा में बैकडोर से हुई नियुक्तियों की जांच हेतु गठित कमेटी द्वारा राज्य गठन के बाद से तदर्थ रुप से हुई सभी नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिये जाने के बाद हडकंप मच गया । आनन-फानन में 2016 के बाद नियुक्त कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया और जिम्मेदार पक्षों की ओर से इन नियुक्तियों को लेकर जिस प्रकार खुलेआम गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए एकदूसरे के खिलाफ सियासी तीर चलाये गये उससे आम जन के साथ ही प्रबुद्ध वर्ग भी भौचक्का सा होकर रह गया । चूंकि गलत की नजीर नहीं दी जा सकती है लेकिन इस मामले में हर कोई गलत की नजीर देकर बचने की जी तोड़ कोशिश में जुटा रहा है ।

 

 

 

 

 

श्री पाण्डे के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 14 में “विधि के समक्ष समानता” तथा अनुच्छेद 16 में ” लोक नियोजन में अवसर की समानता” का प्रावधान है । विधानसभा में हुई नियुक्तियों में तो संविधान के अनुच्छेद 14 एंव 16 का खुला उल्लंघन हुआ ही लेकिन 2016 के बाद नियुक्त कर्मियों की बर्खास्तगी में भी अनुच्छेद 14 का खुला उल्लंघन हुआ जो अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है ।

 

 

 

 

 

राज्य गठन की शुरुआत से लेकर अब तक हर जिम्मेदार पक्ष द्वारा कायदे-कानून को ताक में रखकर अपनाई जाती रही पीक एण्ड चूज की नीति से हतप्रभ उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए समर्पित होकर संघर्ष करने वाले आम जनमानस ने इसके बाद स्वंय को बुरी तरह से ठगा हुआ तब महसूस किया जब विभिन्न श्रेणी की भर्तियों के लिए गठित उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग एंव उत्तराखंड लोक सेवा चयन आयोग द्वारा भर्तियों के लिए आयोजित परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक के मामले सामने आने शुरु हुए ।

 

 

 

 

लोक सेवा आयोग द्वारा हाल ही में पटवारी भर्ती हेतु आयोजित परीक्षा के पेपर लीक होने से हडकम्प मचा है । राज्य के युवाओं में गुस्सा और अभिभावको में अपने नौनिहालों के भविष्य को लेकर चिन्ता है । हालांकि पेपर लीक होने की जांच के साथ ही इस अपराध में लिप्त दोषियों की गिरफ्तारी जारी है और सख्त नकल विरोधी अध्यादेेश लाने की तैयारी भी जारी है लेकिन हैरतअंगेज पहलू यह है कि लगातार हो रही ऐसी आपराधिक घटना के लिए जवाबदेही के सवाल पर सब चुप हैं । अति गोपनीय कक्ष जहां प्रश्न पत्र रखे गये थे क्या वहां जैमर नहीं लगे थे ? उस कक्ष में जब मोबाइल ले जाना निषेध है तो मोबाइल कैसे गया ?

 

 

 

प्रश्न पत्र परीक्षा नियंत्रक की कस्टडी में क्यों नहीं रखे गए ? …व्यवस्था से जुड़े ऐसे तमाम सवाल अभी अनुत्तरित हैं ।आखिर जवाबदेह कौन है ? श्री पाण्डे का कहना है कि इस सवाल के उत्तर के लिए 2015 में हुए ऐसे ही मामले की पृष्ठभूमि में जाना होगा । वर्ष 2014 में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का एक्ट बना और 2015 में विनियमन होने के साथ ही यह फंक्शन में आया ।

 

 

 

 

 

2015 में ही ग्राम विकास अधिकारी/ग्राम पंचायत अधिकारी की परीक्षा में नकल का मामला उजागर हुआ। हालांकि इसके बाद भी नकल के चलते अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित तीन परीक्षा॓ए निरस्त हुई और सात जांच के दायरे में हैं जिससे आयोग की खूब किरकिरी हुई है लेकिन दिलचस्प पहलु यह रहा कि वर्ष 2015 में एक परीक्षा में हुई नकल के लिए आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सचिव एंव परीक्षा नियंत्रक को दोषी मानते हुए तीनों को 4 माह पूर्व गिरफ्तार कर जेल में डाला गया है जबकि अन्य परीक्षाओं में हुई धांधली की जवाबदेही पर चुप्पी है ।

 

 

 

 

उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि लोक सेवा आयोग में संवैधानिक व्यवस्था का परिपालन सही तरीके से हुआ होता तो पेपर लीक जैसी आपराधिक घटना कदापि घटित नहीं होती । स्वायत्तशासी संस्था होने का मतलब यह कदापि नहीं होना चाहिए कि स्वायत्ता के नाम पर मनमर्जी करके कानून का उल्लंघन किया जाय । कानून का उल्लंघन अपराध है और अपराध पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को तत्पर होकर निष्पक्षता के साथ अपनी भूमिका निभानी चाहिए ।

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