अल्मोड़ा:राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत महिला अस्पताल में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस कार्यक्रम का हुआ आयोजन

भारत में विश्व मासिक धर्म की शुरूआत वॉश युनाइटेड संस्था ने की थी। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर की लड़कियों एवं महिलाओं को माहवारी के कारण आने वाली चुनौतियों के प्रति जागरूक करना है। इस साल माहवारी दिवस का मुद्दा नो मोर लिमिट्स है। इसी सोच के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के किशोर स्वास्थ्य अनुभाग में संस्था वाटर एड, वात्सल्य, स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आदि के साझा सहयोग से विश्व माहवारी दिवस राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत महिला चिकित्सालय में महावारी दिवस का आयोजन किया गया।
महिला चिकित्सा जिनमें महिला चिकित्सा अधीक्षक डॉ प्रीति पंत जी चिकित्सक अधिकारी डॉ हेमा रावत द्वारा महावारी और हाइजीनिक के बारे में बताया गया, जिसमें की महावारी स्वच्छता हेतू महत्त्वपूर्ण पहलूओं पर जानकारी दी गई। कार्यक्रम में महामारी से से संबंधित शोधकर्ता आशीष पंथ राहुल जी द्वारा बताया गया कि आजकल महिलाऐं एवं लड़कियां महावारी को लेकर कोई संकोच न रखें महावारी एक साधारण चीज है, महिलाएं साफ-सफाई का ध्यान रखें जैसे कि ज्यादा समय तक एक ही पैड का उपयोग कतई न करें। महावारी साफ-सफाई नहीं करने पर इन्फेक्शन होता है तथा कैंसर होने का खतरा बना रहता है।
इस कार्यक्रम में आरकेएसके काउंसलर हेमा यांकी लेटर ममता वर्मा एचडी हंशी सहा ANM लवी जोशी गीता भाकुनी काउंसलर भावना जोशी उर्मिला जोशी अन्य आशाएं आदि मौजूद थे
🔹पीरियड्स के दौरान रखेें इन बातों ध्यान
मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन हमारे लिए महत्वपूर्ण है। किशोर वयीन लड़कियों को एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए माहवारी को एक प्राकृतिक प्रकिया मानना चाहिए। इसी वजह से मासिक धर्म स्वछता प्रभंदन सरकार के राष्ट्रीय किशोर स्वस्थ कार्यक्रम का हिस्सा है। ये कार्यक्रम देश भर के स्कूलों में मासिक धर्म स्वछता उत्पादनो को बढ़ोतरी देगा। स्कूलों को एम् यह एम् प्रबंधन का एक अहम् हिस्सा बनाना हमारा लक्ष्य है।
दूसरा संस्था के अनुसार, भारत में लगभग 35.5 करोड़ मासिक धर्म वाली महिलाएं और लड़कियां हैं जो विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति के कारण प्रभाविक रूप से मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) के लिए बहुस्तरीय बाधाओं का सामना करती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिये गए जानकारियों के अनुसार, भारत में केवल 12% महिलाओं और लड़कियों को ही सैनिटरी नैपकिन के बारे में ज्ञात है, अन्यथा उनमें से अधिकांश मासिक धर्म के दौरान पुरानी, अस्वच्छ तरीकों पर निर्भर हैं।