Almora News:अतिथि शिक्षकों को नहीं दे पा रहे हैं मानदेय, अराजकता का शिकार सोबन सिंह जीन विश्वविद्यालय

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अतिथि शिक्षकों को नहीं दे पा रहे हैं मानदेय, अराजकता का शिकार सोबन सिंह जीन विश्वविद्यालय

सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर लंबे समय से सवाल खड़े हो रहे हैं। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अलग होने के पर यदि प्रगति का ग्राफ देखें तो इस विश्वविद्यालय का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। 

वर्तमान में 100 से अधिक अतिथि व्याख्याताओं को मानदेय के लाले पड़े हैं। बागेश्वर , चंपावत में व्याख्याताओं ने विरोध के स्वर भी उठाने शुरू कर दिए हैं। 

बीते दिनों चंपावत और बागेश्वर में शिक्षकों के कुलपति को ज्ञापन भी सौंपा है। युवाओं शिक्षकों ने बताया कि जुलाई माह में विश्वविद्यालय के कैंपसों की शैक्षिक दुर्दशा सुधारने के लिए 25 से 35 हजार के मानदेय पर उनको रखा गया था। विषयवार इन युवाओं को चंपावत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर कैंपसों में तैनात भी किया गया। तैनाती से पूर्व उनसे सख्त नियमावली का शपथपत्र भी भरवाया गया जिसको लेकर युवाओं में रोष भी था लेकिन बेरोजगारी के दबाव में उनके द्वारा उसे स्वीकारा गया। अनेक शिक्षकों ने चयन के बाद भी ज्वाइन नहीं किया। 

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इधर राजनीतिक व विश्वविद्यालय में रसूक रखने वाले अनेक शिक्षकों व शिक्षकों की करीबियों को मनचाहे कैंपस दिए गए और अनेकों को नियम ताक में रखकर भी तैनाती दी गई है। इस सब के बीच कैंपसों में जुलाई माह से शैक्षिक कार्य करने पहुचे शिक्षक बीते तीन माह से मानदेय का रोना रो रहे हैं। शिक्षकों ने बताया कि अधिकांश शिक्षक नए थे अनेक तो सीधे स्नातकोत्तर के बार यूसेट अथवा नेट परीक्षा उत्तीर्ण किए थे । 

कैंपसों में पहुंचने पर उन्हें अनुशासन, संस्कृतिक, हाॅस्टल, खेल आदि समितियों को अतिरिक्त कार्य सौंपा गया। वहीं कक्षाओं में छात्रों को लाना सबसे बड़ी चुनौति थी। घरों से दूर किराए के कमरों में रहकर अल्प मानदेय में पढ़ाना उनके लिए अत्यधिक पीड़ादाय कार्य सिद्ध हो रहा है जब तीन माह से वे घर से पैसा मंगाकर जीवन यापन कर रहे हैं। 

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काॅलेज में चुनाव , अनुशासन व्यवस्था, प्रवेश कार्य, जैसे अतिरिक्त कार्यों के दबाव के कारण एक दर्जन से अधिक युवा अपनी जाॅब छोड़ने का मन भी बना चुके हैं। अनेक महिला शिक्षिकाएं मैचुअल स्थानांतरण की गुहार लगा चुकी है।लेकिन विश्वविद्यालय के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। मुख्यमंत्री के स्वपनों के जनपद कहे जाने वाले चंपावत जनपद के शिक्षकों ने अत्यधिक रोष जताया है। अनेक युवाओं ने बताया कि पिं्रटर, कंप्यूटर, सुलभ शौचालय, अलग कक्ष जैसी बुनियादी सुविधओं के अभाव के बावजूद भी वे कार्य कर रहे हैं लेकिन विश्वविद्यालय उनका कोई संम्मान नहीं कर रहा है। यहां तक कि उनके एकजुट होने पर भी सवाल खड़े किए जा रहे है और उन्हें अनेक राजनीतिक दबावों से भी जूझना पड़ रहा है।

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