सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आपराधिक मामलों में आरोपितों की रिहाई को सरल बनाने के दिये निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आपराधिक मामलों में आरोपितों की रिहाई को सरल बनाने के लिए उन्हें जमानत देने के लिए एक नया कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया है

 

सर्वोच्च अदालत का यह फैसला इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है कि ऐसे सैकड़ों विचाराधीन कैदियों में बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता, नेता और पत्रकारों की जमानत याचिकाएं अरसे से लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्टो और राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में इस संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।

 

 

समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने सोमवार को कई दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि जमानत याचिका को दो हफ्ते में निस्तारित किया जाना चाहिए। अग्रिम जमानत की याचिका छह हफ्ते में पूरी होनी चाहिए।

 

 

 

खंडपीठ ने कहा कि जांच एजेंसियां और उनके अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41-ए (आरोपित को पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करना) का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्टो से उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने को भी कहा है जो जमानत की शर्ते को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं। न्यायालय ने ऐसे कैदियों की रिहाई में मदद के लिए उचित कदम उठाने का भी निर्देश दिया।

 

 

 

 

सर्वोच्च अदालत ने आरोपित की जमानत मंजूर कराने के दायित्व पूरे नहीं कर पाने की जानकारी भी कोर्ट के संज्ञान में लाने की हिदायत दी है। न्यायालय ने सीबीआइ द्वारा एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़े मामले में फैसला सुनाए जाने के दौरान ये दिशा-निर्देश जारी किए।

 

 

 

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