अल्मोड़ा की स्याही देवी आध्यात्म के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य भी
अल्मोड़ा: माना जाता है कि स्याही देवी अल्मोड़ा के राजाओं की कुल देवी थी यहाँ के राजा देवी की पूजा करते थे। मंदिर के मुख्य पुजारी के अनुसार मंदिर 11वीं शताब्दी का बना हुआ है और मंदिर में भगवान गणेश जी की मूर्ति 1254 में स्थापित की गई थी। जो भी भक्त सच्चे मन से देवी के दर्शन करने आते है उनकी मुराद पूरी होती है।
स्याही देवी मंदिर अल्मोड़ा जिले के मुख्यालय से 36 किमी दूरी पर स्थित है। यह मंदिर शीतलाखेत की ऊँची चोटी पर स्थित है यहां जाने के लिए शीतलाखेत से आगे पैदल यात्रा करनी पड़ती है। शीतलाखेत जो अपने आप में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। यह स्थान लगभग चार सौ साल तक कुमाऊं का सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र रहा है, जो चंद राजाओं द्वारा बसाया गया है और ब्रिटिशों द्वारा विकसित किया गया है।
यहाँ की प्राकृतिक छटा निराली है जिस कारण यहां साल भर सैलानियों की आवाजाही बनी रहती है यहाँ से हिमालय का बहुत ही अच्छा नज़ारा देखने को मिलता है। यहाँ का नज़ारा देख अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजो ने भी यहाँ बंगले बनाये जो अब जो बोरा स्टेट के नाम से जाना जाता है स्याही देवी मंदिर की मूर्ति बहुत पुरानी है और इसी तरफ काली माँ की भी प्रतिमा है, स्थानीय लोगों द्वारा मंदिर में पूजा की जाती है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने एक रात में किया था। इससे पहले यह मंदिर यहाँ से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित था, जहां कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने कुछ दिन वहां तपस्या की थी। स्याही देवी का पुराना मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ था।
वहाँ आसपास के लोग ज्यादा नहीं जाया करते थे क्योंकि वहाँ शेर, बाघ का डर अधिक था। इसलिए बाद में इस मंदिर से स्याही देवी की मूर्ति को शीतलाखेत की चोटी पर स्थापित कर दिया गया। जो कि अब एक भव्य मंदिर बन चुका है। इस मंदिर में आज भी दाल- चावल का भोग लगता है। मंदिर के निकट भैरव जी का मंदिर है वहाँ भी खिचड़ी का भोग लगाया जाता है लोग मानते है कि स्याही देवी की पूजा के बाद जब तक भैरव जी के दर्शन नहीं करोगे तो पूजा अधूरी मानी जाएगी। इसलिए दोनों के दर्शन करना आवश्यक है।
स्याही देवी मंदिर से जुडी मान्यता
स्याही देवी मंदिर माना जाता है कि स्याही देवी अल्मोड़ा के राजाओं की कुल देवी थी यहाँ के राजा देवी की पूजा करते थे। मंदिर के मुख्य पुजारी के अनुसार मंदिर 11वीं शताब्दी का बना हुआ है और मंदिर में भगवान गणेश जी की मूर्ति 1254 में स्थापित की गई थी। जो भी भक्त सच्चे मन से देवी के दर्शन करने आते है उनकी मुराद पूरी होती है। मन्नते पूरी हो जाने पर भक्तगण अपने परिवार के साथ यहाँ आकर घंटियाँ चढ़ाते है और भंडारा करते है।
माना जाता है स्याही देवी माँ तीन रूपों से जानी जाती है। पहली जब सूर्य निकलता है तो देवी सुनहरे रंग की दिखाई देती है, उसके बाद दिन में काली रूप में आ जाती है और शाम को दक्षिण की ओर से जब किरणें पड़ती है तब साँवले रंग की दिखती है। साथ ही आज भी दर्शन करने आए श्रद्धालु स्याही देवी के प्राचीन व नवीन दोनों मंदिर में दर्शन करते है ।