सावधान क्या आप अपने बच्चों को चुप कराने या खाना खिलाने के लिए थमा देते हैं मोबाइल, बढ़ सकता इन चीजों का खतरा
आजकल एक नया ट्रेंड चल पड़ा है। अगर छोटा बच्चा रोता है तो माता-पिता उसे चुप कराने के लिए हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं और उसमें वीडियो चालू कर देते हैं। वहीं कुछ माता-पिता बच्चे को खाना खिलाने के लिए भी उसके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं।
इससे बच्चा चुप तो हो जाता है। लेकिन धीरे-धीरे बच्चे को मोबाइल की इतनी आदत हो जाती है कि वह बिना मोबाइल देखे खाना ही नहीं खाता। लेकिन क्या आपको पता है कि यह आपके बच्चे की मानसिक सेहत के लिए अच्छा नहीं है। कई रिसर्च में इस बात का खुलासा हो चुका है कि मोबाइल की लत बच्चों के दिमाग पर गलत असर डालती है। इससे बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है। जानते हैं कि आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म और इससे बच्चों को कैसे बचाएं।
💠क्या है वर्चुअल ऑटिज्म
स्मार्टफोन, टीवी या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों में कई लक्षण दिखाई देते हैं। वर्चुअल ऑटिज्म का ज्यादा असर अक्सर 4-5 साल के बच्चों में देखने को मिलता है। मोबाइल फोन, टीवी और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत की वजह से ऐसा होता है। स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में बोलने और समाज में दूसरों से बातचीत करने में दिकक्त होने लगती है। हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, इस कंडीशन को ही वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है।
💠virtual autism in kids
वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण
बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षणों की बात करें तो निम्म लक्षण दिखाई देते हैं।
💠हर थोड़ी देर में चिड़चिड़ाना
💠रिस्पॉन्स न करना
💠2 साल के बाद भी बोल न पाना
💠फैमिली मेंबर्स को न पहचानना
💠नाम पुकारने पर
💠अनसुना करना
💠फैमिली मेंबर्स को न पहचानना
💠किसी से नजरेन मिलाना
💠एक ही एक्टिविटी को दोहराना
💠ऐसे बचाएं बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से
पैरेंट्स को बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखना चाहिए। गैजेट्स का जीरो एक्सपोजर बच्चों में रखना चाहिए। मतलब उन्हें पूरी तरह इससे दूर रखना चाहिए। अक्सर जब बच्चा छोटा होता है तो पैरेंट्स उन्हें पास बिठाकर मोबाइल फोन दिखाते हैं। बाद में बच्चों को इसकी लत लग जाती है। पैरेंट्स को सबसे पहले तो अपने बच्चों को इलेक्ट्रॉनिग गैजेट्स से दूर रखना है। उनका स्क्रीन टाइम जीरो करने पर जोर देना चाहिए। उनका फोकस बाकी चीजों पर लगाएं। स्लीप पैटर्न भी दुरुस्त करें। बच्चों को आउटडोर एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें।