बागेश्वर की ये है अद्भुत परम्परा आज तक रखी जिंदा
वर्षाकाल शुरू होते ही गावों में धान के पौधों की रोपाई का कार्य भी शुरू हो गया है। अनेक काश्तकार पौधरोपण के लिए हुड़किया बोल लगा रहे हैं। खेत हुडकों की घम घम से गुंजायमान हैं।
रविवार को ग्राम पंचायत कपकोट के काश्तकार नवीन कपकोटी के खेतों में धान पौधों की रोपाई का कार्यक्रम था। रोपाई के लिए उन्होंने दो हुड़किया बोल बुलाए थे। कंधे पर हुड़का लटकाए गायक महेश राम और बलवंत ने गीतों की शुरुआत दैणा होया भूमि को भूम्याला,,,,, जीरिहा झुमका,,,, शिखर डाना ह्यू पड़ी र छोड़ी दे भीना मेरि धपेली समेत अनेक मन मोहक गीतों का गायन किया। हुड़किया बोल के गीतों के साथ पौधों की रोपाई में मशगूल महिलाएं धार देने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रही थी।
महिलाएं और खेतों की जुताई के काम में मस्त लोग बीच बीच में हुड़किया बोल के मस्ती भरे गीतों पर जमकर ठुमके भी लगा रहे थे। गीतों को सुनने के लिए वहां काफी लोग जमा थे। इस कार्य में युवा काश्तकार महिमन कपकोटी आदि ने सहयोग दिया। मालूम हो हुड़किया बोल पहाड़ की प्राचीन विधाओं में से एक है। इसमें एक व्यक्ति हुड़के की थाप पर देवी देवताओं के आवाहन साथ अपने गीतों के गायन की शुरुआत करता है।
पौधरोपण में जुटी महिलाएं गीतों को दोहराती हैं। हुड़किया बोल के आयोजन से जहां पौधरोपण के काम में तेजी आती है वहीं थकान भी नहीं होती। पहले रोपाई और गुड़ाई निराई के काम में हुड़किया बोल का गांवों में खूब आयोजन होता था। पलायन और जंगली जानवरों के आतंक से जहां कृषि पर ग्रहण लग रहा है वहीं इस प्राचीन विधा के भी लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। ग्राम पंचायत कपकोट में भावी पीढ़ी के किसान इस विधा को जीवंत रखने के प्रयास में जुटे हैं।
रिपोर्ट हिमांशु गढ़िया