ये है महिमा हाटकालिका की आइये जानते हैं महाशक्ति के बारे में
महाकाली मंदिर शक्तिपीठ- पिथौरागढ़ शहर से सतहत्तर किलोमीटर दूर गंगोलीहाट में स्थित यह पौराणिक देवालय देवी महाकाली को समर्पित है। यह मंदिर ऐतिहासिक व पौराणिक मान्यताओं सहित अद्भुत चामत्कारिक गाथाओं को अपने आप में समेटे हुये है।
देवी पुराण व देवी भागवत के अनुसार असुर राज महिषासुर, चण्ड-मुण्ड, शुम्भ-निशुम्भ सहित तमाम भयंकर राक्षसों का वध करने के बाद भी महाकाली का रौद्र रूप शांत नहीं हुआ और इस रूप ने महाविकराल, धधकती, महाभयानक ज्वाला का रूप धारण कर तांडव मचा दिया था।
महाकाली ने महाकाल का भयंकर रूप धारण कर देवदार के वृक्ष में चढकर जागनाथ व भुवनेश्वर नाथ को आवाज लगानी शुरू कर दी। कहते हैं यह आवाज जिस किसी के कान में पडती थी वह व्यक्ति प्रातः तक यमलोक पहुंच चुका होता था। छठी शताब्दी में जगत गुरू शंकराचार्य यहां पहुंचे तो उन्होंने देवी महाकाली के रौद्रमय रूप को शांत करने के लिए मंत्रोचार के द्वारा लोहे के सात बडे-बडे भदेलों से शक्ति को कीलन कर प्रतिष्ठापित किया।
अष्टदल व कमल से मढवायी गयी इस शक्ति की ही पूजा अर्चना वर्तमान समय में यहां पर होती है। पौराणिक काल में प्रचलित नरबलि के स्थान पर पशु बलि की प्रथा आज भी प्रचलित है।
चमत्कारों से भरे इस महामाया भगवती के दरबार में सहस्त्र चण्डी यज्ञ, सहस्रघट पूजा, शतचंडी महायज्ञ, अष्टबलि अठवार का पूजन समय-समय पर आयोजित होता है। यही एक ऐसा दरबार है। जहां अमावस्या हो चाहे पूर्णिमा सब दिन हवन यज्ञ आयोजित होते हैं। जब मंदिर में सतचण्डी महायज्ञ आयोजित होते हैं।
तब कालिका दरबार की आभा देखने लायक होती है। १०८ ब्राह्मणों द्वारा प्रतिदिन शक्ति पाठ की गूंज से यूं मालूम पडता है। मानो समस्त देवता शैल पर्वत पर आकर रहने लगे हों। कालिका मंदिर के पुजारी स्थानीय निवासी रावल उपजाति के लोग हैं। जो क्रमवार से उपस्थिति देकर बारीदारी का हक निभाते हैं। मंदिर में पूजा अर्चना का कार्यक्रम सम्पन्न कराने के लिये अर्ग्रोन गांव के पंत लोग उपस्थित रहते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यह दायित्व हाट गांव के पाण्डेय निभाते हैं।
सरयू एवं रामगंगा के मध्य गंगावली की सुनहरी घाटी में स्थित भगवती के इस आराध्य स्थल की बनावट त्रिभुजाकार बतायी जाती है और यही त्रिभुज तंत्र शास्त्र के अनुसार माता का साक्षात् यंत्र है। यहां धनहीन धन की इच्छा से, पुत्रहीन पुत्र की इच्छा से, सम्पत्तिहीन सम्पत्ति की इच्छा से सांसारिक मायाजाल से विरक्त लोग मुक्ति की इच्छा से पधारते हैं व मनोकामना पूर्ण पाते हैं।
विश्व युद्व के दौरान जब भारतीय सैनिकों से खचाखच भरा जहाज समुद्र में डूबने लगा तो उसी जहाज में इस क्षेत्र के उपस्थित एक सैनिक ने माँ का स्मरण कर डूबते जहाज को इस तरह से उबारा कि जहाज जय श्री महाकाली गंगोलीहाट वाली की जय-जयकार से गूंज उठा। तभी से भारतीय सैनिकों की इस मन्दिर के प्रति विशेष आस्था है। बताते हैं कि गंगोलीहाट का महाकाली मंदिर संस्कृत के महाकवि कालिदास की भी तपो भूमि रहा है।
किंवदन्ति है कि देवी कालिका का जब रात में यहां डोला चलता है तो इस डोले के साथ कालिका के गण आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहते है यदि कोई व्यक्ति इस डोले को छू ले तो दिव्य वरदान का भोगी बनता है। हाट गांव के चौधरियों द्वारा महाकालिका को चढायी गयी २२ नाली भूमि में देवी का डोला चलने की बात कही जाती है। महाआरती के बाद महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है। प्रातः काल बिस्तर यह दर्शाता है कि मानो यहां साक्ष्यात कालिका विश्राम करके गयी हों क्योंकि बिस्तर में सलवटें पडी रहती हैं।
इस मंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण व शिव महापुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी हुआ है। देवी माँ के भक्तों का मानना है कि देवी की कृपा से उसके सच्चे भक्तों पर कोई विपत्ति नहीं आती और सभी का सदा सर्वदा कल्याण होता है।