उत्तराखंड सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर रमेश चंद्र पाण्डे ने उठाये सवाल

रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चंद्र पाण्डे ने खुलासा किया है कि आडिट एक्ट 2012 के नियम 8(3) के अनुसार पिछले आठ साल से वार्षिक आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर नहीं रखे गये हैं । ऐसा होने से सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर सवाल भी उठाया है ।
बताया है कि राज्य विधान सभा से पारित होने के बाद राज्यपाल की सहमति से 7जून 2012 को उत्तराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 2012 जारी हुआ ।
उत्तराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 2012 के नियम 8(3) में निहित प्रावधान के अनुसार निदेशक लेखा की एक संहत लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार करेगा या करायेगा और उसे राज्य विधान सभा के समक्ष रखे जाने के लिए राज्य सरकार को प्रतिवर्ष भेजेगा ।
इस नियम के तहत निदेशालय द्वारा वर्ष 2012-13 एवं 2013-14 के वार्षिक लेखा परीक्षा प्रतिवेदन राजकीय मुद्रणालय से प्रिन्ट करवाकर क्रमश: 12 जून 2015 तथा 5 मई 2016 को शासन को भेजे गये जिन्हें शासन स्तर से विधानसभा पटल पर रखा जा चुका है लेकिन 2014-15 से अद्यतन अवधि की आडिट रिपोर्ट अभी तक विधानसभा पटल पर नहीं रखी गई हैं ।
आडिट निदेशालय के अनुसार वर्ष 2014-15 से 2019-20 की आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखे जाने हेतु आडिट प्रकोष्ठ वित्त विभाग को भेजी गई हैं । लम्बे समय तक आडिट प्रकोष्ठ में पड़े रहने के बाद इन्हे हाल ही में आपत्ति के साथ निदेशालय को लौटा दिया और निदेशालय द्वारा कुछ समय पूर्व आपत्ति का सुधार कर अनुमोदन हेतु पुन: शासन को भेजा गया है । अनुमोदन होने के बाद निदेशालय द्वारा राजकीय मुद्रणालय से प्रिन्ट कराने के बाद विधानसभा के पटल पर रखने हेतु इसे शासन को भेजा जायेगा ।
बहरहाल आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखने में हुई देरी के लिए आडिट निदेशालय और आडिट प्रकोष्ठ एक दूसरे पर अंगुली उठाते नजर आ रहे हैं और कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि इसे विधान सभा के पटल पर पुट -अप करने में अभी और कितना वक्त लगेगा । कहा गया है कि अनियमितताओं व गबन घोटालों से सम्बन्धित आडिट रिपोर्ट विधान सभा के संज्ञान में समय रहते नहीं लाये जाने से जहां इसमें सुधार व नियन्त्रण हेतु कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं वहीं सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं ।
2012 में आडिट एक्ट बन जाने के बाद भी अभी तक नियमावली नहीं बनने पर भी सवाल उठाए गये हैं ।










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