कुमाऊं क्षेत्र का स्याल्दे-बिखौती कौतिक जिसमें आज भी मिलती है हमारी परम्परा

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कुमाऊं क्षेत्र का स्याल्दे-बिखौती कौतिक जिसमें आज भी मिलती है हमारी परम्परा

कुमाऊं क्षेत्र में द्वाराहाट के प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती (यानी विषुवत संक्रान्ति) के मेले में आज भी ग्रामीण परिवेश की झलक मिलती है। पाली पछाऊँ क्षेत्र की परंपरागत लोक संस्कृति को पेश करने वाले इस मेले का माहौल आसपास के गांवों में फूलदेई के त्योहार से ही बनना प्रारंभ हो जाता है,

जबकि हिन्दू नव संवत्सर की शुरुआत के साथ चैत्र मास की अंतिम तिथि से द्वाराहाट से आठ किमी दूर प्रसिद्ध शिव मंदिर विमांडेश्वर में इसकी औपचारिक शुरुआत हो जाती है। आगे मेला वैशाख माह की पहली तिथि तक द्वाराहाट बाजार तक पहुंच जाता है। मेले के दौरान गांवों में एक खास अंदाज में एक-दूसरे के हाथ थाम और कदम से कदम मिलाते हुए कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक नृत्यों झोडे, चांचरी, छपेली आदि का परंपरागत वस्त्रों व अंदाज में लोग आनंद लेते मिल जाते हैं।

मेले में द्वाराहाट बाजार की मुख्य चौक पर रखे एक खास पत्थर-ओड़ा को भेटने यानी छूने की एक खास परंपरा का निर्वाह किया जाता है।
लोक नृत्य और लोक संगीत से लकदक इस मेले में अब भी रात-रात भर भगनौले जैसे लोकगीत अजब समां बाँध देते हैं। जिसे देखने-सुनने को पर्यटक भी दूर-दूर से पहुंचते हैं।
(प्रस्तुति जगमोहन साह लाला बाज़ार अल्मोड़ा)

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