ये देखलो अब उत्तराखंड में मानिटरिंग करने वाले कार्मिक विभाग को ये पता ही नहीं कि शिकायत निवारण समिति का गठन किस महकमें में हुआ है और किसमें नहीं ।:-

हल्द्वानी – कार्मिको की हडतालों को लेकर 4 साल पहले दायर एक पी.आइ.एल. पर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा सभी विभागों में शिकायत निवारण समिति का गठन करने हेतु दिये गये आदेश का पालन करने हेतु कार्मिक एवं सतर्कता विभाग द्वारा सभी विभागाध्यक्षों को फरमान तो जारी कर दिया लेकिन आर.टी आई से हुए खुलासे के अनुसार कोर्ट के इस आदेश के धरातलीय पालन की स्थिति पर नजर रखने की जहमत ही नहीं उठाई गयी है ।
नतीजतन मानिटरिंग करने वाले कार्मिक विभाग को ये पता ही नहीं कि शिकायत निवारण समिति का गठन किस महकमें में हुआ है और किसमें नहीं । आरटीआई से यह सूचना मांगने पर जवाब दिया गया है कि हर विभाग का दरवाजा खटखटाकर यह सूचना प्राप्त करें ।
गौरतलब है कि कार्मिक संगठनों के कार्यबहिष्कार व हडताल को लेकर दायर जनहित याचिका संख्या 115/2018 पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा 29 सितम्बर 2018 को महत्वपूर्ण आदेश पारित किया गया था जिसमें कार्मिक संगठनों द्वारा की जाने वाली अवैध हडताल से निपटनें के लिए सरकार को दिये गये तमाम निर्देशों में से एक महत्वपूर्ण निर्देश यह भी है कि सभी विभागों में ” शिकायत निवारण समिति” का गठन किया जाय और हर तीसरे माह समिति की बैठक कर उन बैठकों में कार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों को भी बुलाये ।
सरकार की ओर से कार्मिक एवं सतर्कता विभाग द्वारा 29 दिसम्बर 2018 को सभी विभागाध्यक्षों को कोर्ट के इस आदेश का पालन करने हेतु आदेश जारी किये गये । इस आदेश की प्रतिलिपि उच्च न्यायालय के मुख्य स्थायी अधिवक्ता को करते हुए यह बता दिया गया कि कोर्ट के उक्त आदेश का पालन कर दिया है ।
इस बीच महानिदेशक विधालयी शिक्षा की ओर से 13 मई को एक आदेश जारी कर कार्मिक संगठनों के प्रैैस में बयान देने पर रोक लगाते हुए उन्हें अपनी बात उचित फोरम पर रखने की हिदायत दी गई l इधर कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग -2 की ओर से 16 जून को जारी आदेश में चारधाम यात्रा एंव मानसून अवधि में सम्भावित आपदा को ध्यान में रखते हुए राज्याधीन सेवाओं में 6 माह के लिए हडताल पर रोक लगा दी गई ।
विकास में बाधक हडतालों के प्रति जवाबदेही के सवाल को लेकर मुखर हल्द्वानी स्थित बिठौरिया नम्बर 1 के देवकीबिहार निवासी रमेश चंद्र पाण्डे ने शिक्षा निदेशालय एवं कार्मिक विभाग के लोक सूचना अधिकारियों को पृथक पृथक आवेदन पत्र भेजकर आरटीआई के तहत शिकायत निवारण समिति के गठन के सम्बन्ध में सूचना मांगी ।
उनके द्वारा शिक्षा निदेशालय से शिकायत निवारण समिति के गठन सम्बन्धी आदेश और तिमाही बैठकों के कार्यवृत की सत्यापित प्रति मांगी थी । राज्य के सबसे बडे महकमें में शिकायत निवारण समिति की स्थिति के बारे में जवाब आया कि ” सूचना पटल पर धारित नहीं है ” ।
कार्मिक विभाग से 4 बिन्दुओं पर सूचना मांगी थी ।
1- समस्त विभागाध्यक्षों द्वारा शिकायत निवारण समिति का गठन किये जाने सम्बन्धी विवरण की सत्यप्रतिलिपि ।
2- शिकायत निवारण समिति के गठन उपरान्त विभागवार सम्पन्न तिमाही बैठको के विवरण की सत्यप्रतिलिपि ।
3- जिन विभागों में अब तक शिकायत निवारण समिति का गठन नही हुआ, उनकी सूची ।
4- उक्त आदेश के परिपालन हेतु कार्मिक विभाग के स्तर से अनुश्रवण में की गई कार्यवाही एंव जारी पत्रो की सत्यप्रतिलिपि ।
उक्त के जवाब में कार्मिक विभाग के लोक सूचना अधिकारी द्वारा पहले तीन बिन्दुओं के बारे में कहा गया कि ” सूचना का अधिकार नियमावली 2013 के नियम 5(ग) मे उल्लेख है कि यदि सूचना दो या अधिक विभागों से सम्बन्धित है तो ऐसी स्थिति में अनुरोध पत्र अन्तरित नही किया जायेगा । राय दी गई कि सम्बन्धित विभागों से पृथक पृथक आवेदन कर सूचना प्राप्त करें ।
बिन्दु 4 पर मांगी सूचना के बारे मे जवाब दिया कि सूचना कार्यालय में धारित नहीं है ।
रमेश चंद्र पाण्डे ने कार्मिक विभाग द्वारा दिये गये उत्तर पर गहरी हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि जिस नियम का हवाला देते हुए उन्हें जिस सूचना के लिए हर विभाग का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया गया है वह सरासर गलत और अपने दायित्व से बचने का असफल प्रयास है ।
कोर्ट के उक्त आदेश का परिपालन करने हेतु सरकार की ओर से जिस कार्मिक विभाग द्वारा सभी विभागों को आदेशित किया गया उसी का यह दायित्व है कि वह मानिटरिंग कर यह सुनिश्चित करे कि आदेश का पालन किसके स्तर से हो रहा है और किसके स्तर से नहीं ।
इसके विपरीत जो जवाब दिया गया है उससे साफ है कि कोर्ट के आदेश के पालन हेतु मानिटरिंग करने वाले कार्मिक विभाग द्वारा कागजी आदेश जारी करके अपने दायित्व की इतिश्री कर ली और धरातलीय परिपालन पर नजर रखने के दायित्व से मुंह फेर लिया ।
पाण्डे ने कोर्ट के उक्त आदेश को ऐतिहासिक बताते हुए दावा किया है कि इसका शतप्रतिशत पालन होने पर हडताल की स्थिति पर स्वत: ही विराम लग जाता और सरकार को हडताल पर रोक लगाने जैसे हास्यास्पद एवं तुगलकी फरमान को जारी करने की नौबत ही नहीं आती ।
कहा कि जनहित से जुड़े ऐसे मामलों में टाल-मटोल उत्तर देने वाले मामलों की शिकायत आरटीआई एक्ट के सेक्शन 18 के तहत राज्य सूचना आयोग से की जायेगी ।
पाण्डे ने कहा कि समूचा कार्मिक समुदाय सरकार का अभिन्न अंग है और हर आपदा का सामना करने के लिए तत्पर है । ऐसे में आपदा की स्थिति में कार्मिको की आवाज को दबाने के बजाय उन्हें खुलकर अपनी बात रखने के लिए उचित फोरम दिया जाना चाहिए ।
उन्होंने उम्मीद व्यक्त की है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक अच्छी सरकार का परिचय देने के लिए प्रथमिकता के आधार पर कोर्ट के उक्त आदेश का परिपालन कराते हुए सभी विभागों में शिकायत निवारण समिति का गठन कराकर कार्मिकों को अपनी बात रखने के लिए उचित फोरम देंगे और विकास में बाधक हडतालों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित कराकर उत्तराखंड के साथ लगे हडताली प्रदेश के तमगे को हटाने का ऐतिहासिक निर्णय लेंगे ।