Makar Sankrati:मकर संक्रांति के साथ आज उत्तरायण पर्व,देवभूमि में घुघुतिया त्योहार का है विशेष महत्व जाने

हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहारों को मनाने की परंपरा है। इन्हीं में से एक है मकर संक्रांति।शास्त्रों में मकर संक्रांति पर स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है।मकर संक्रांति पर खरमास का भी समापन हो जाता है और शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है।आइए आपको मकर संक्रांति से जुड़ी चार प्रमुख कथाओं के बारे में बताते हैं।
🔹देवताओं का दिन
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश यानी मकर संक्रांति दान, पुण्य की पावन तिथि है. इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है।इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है. मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है. इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है. पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती।
🔹भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. जब वे बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था. ऐसा कहते हैं कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं कुछ पल के लिए देवलोक चली जाती हैं या फिर उन्हें पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है।
🔹उत्तराखंड में कुछ ऐसे मनाया जाता है यह त्यौहार
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को ‘घुघुतिया’ के तौर पर धूमधाम से मनाया जाता है।उत्तरायणी की पहली रात को लोग जागरण करते हैं। रात को ‘तत्वाणी’ (रात को गरम पानी से नहाना) होती है। सुबह ठंडे पानी से नदी या नौलों में नहाने की परंपरा रही है। ‘एक दिन पहले आटे को गुड़ मिले पानी में गूंथा जाता है. देवनागरी लिपी के ‘चार’, ढाल-तलवार और डमरू सरीखे कई तरह की कलाकृतियां बनाकर पकवान बनाए जाते हैं. इन सबको एक संतरे समेत माला में पिरोया जाता है. इसे पहनकर बच्चे अगले दिन घुघुतिया पर सुबह नहा-धोकर कौओं को खाने का न्योता देते हैं। बच्चे कुछ इस तरह कौओं को बुलाते हैं-
काले कव्वा काले, घुघुती माला खाले।
ले कव्वा बड़, मैंके दिजा सुनौंक घ्वड़।
ले कव्वा ढाल, मैंके दिजा सुनक थाल।
ले कोव्वा पुरी, मैंके दिजा सुनाकि छुरी।
ले कौव्वा तलवार, मैंके दे ठुलो घरबार।