आइये मिलाते हैं एक ऐसी महिला से जो आज के दौर में भी अपनी उत्तराखंड की परम्पराओं के प्रति समर्पित हैं
आज प्रायः देखा जा रहा है कि हमारे उत्तराखंड की संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है। ऐसे में कोई इसके लिए आज भी सजग है तो वो धन्यबाद के पात्र हैं
जब बाज़र का मिल का आटा दाल हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में नाम मात्र का भी नही मिलता था तो तब हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में हथ चक्की का उपयोग हर घर मे होता था जिसमें रोजमर्रा के लिए महिलाओं द्वारा दाल, गेहूं, मडुवा, मदिरा, की पिसाई इसी हथ चक्की के द्बारा किया जाता था पर अब वर्तमान के समय मे इसका प्रयोग नाममात्र घरों में किया जाता है आज ये हमारी संस्क्रति लगभग समाप्ति की ओर है
इस हथ चक्की में दाल,को मुट्ठी से डालकर एक हाथ से हैडिल को घुमा कर दालो के बीच को दला जाता है।
दाल को दलकर सूफा से फटक कर साफ करके दाल खाने योग्य बनाया जाता है।
आज के इस दौर में भी एक महिला ऐसी है जो आज भी इसका प्रयोग कर इस संस्क्रति को जिंदा रखी हुई है आइये मिलते हैं इस महिला से ये है
पिथौरागढ़ जिले के ननोली की रहने वाली शोभा नेगी जो आज भी अपने पैतृक गांव में रहती है और इस हथ चक्की का प्रयोग कर अपने परिवार के लिए छोटी हाथ चक्की से दाले और बड़ी से गेहूं मडुवा मदिरा पीस रही है यही नही वो अपनी चक्की से अपनी लडकी को भी इसको चलाना सीखा रही है सलाम है इस मातृसक्ति को जो आज अपने मातृभूमि की संस्कृति की यादें ताजा करनी में जुटी है।
शोभा नेगी की तरह ही हमारी पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं ने अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने और इसको बचाने के लिये आगे आना चाहिए
आपको बता दे प्राचीन काल में हथ चक्की ही एक साधन हुआ करता था जो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का एक बहुत बड़ा और आवश्यक साधन था जिसमें पूरे परिवार के आटा दाल की पिसाई व दलाई हुआ करती थी ये हर परिवार का एक अनमोल यंत्र हुआ करता था पर आज की आधुनिक समय मे ये अपनी पहचान खोता जा रहा है
इसको लेकर प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता अपनी माताओं व बहिनों से आग्रह करते हुए कहा कि आज उत्तराखंड में धीरे धीरे हमारी मातृभूमि की संस्कृति व रीति-रिवाज परम्परा विलुप्ति की ओर जा रहे हैं जिसको बचाने के लिए है सबका कर्तब्य है उन्होंने धन्यबाद दिया शोभा नेगी जो आज अपने पैतृक गांव में हथ चक्की के द्धारा आज भी दालों व गेहूं ,मडुवा ,मदिरा की पिसाई करना उन्होंने नहीं छोड़ा। प्रताप नेगी ने बताया की शोभा नेगी को बचपन से ही उत्तराखंड की संस्कृति व रीति-रिवाज और परम्पराओं को हमेशा से निभाती आयी है उनको अपनी पौराणिक परम्पराओं से खासा लगाव रहा है
शोभा नेगी की तरह और भी महिलाओं को अपनी मातृभूमि की संस्कृति व परंपरा को फिर से उजागर करने में प्रयास करना चाहिए। अपनी मातृभूमि की संस्कृति ही हमारी पहचान है।