पिथौरागढ़ ज़िले के उच्च हिमालयी क्षेत्र का बौन गांव जिले का पहला बना हर्बल गांव
पिथौरागढ़ ज़िले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित दारमा घाटी का बौन गांव जिले का पहला हर्बल गांव बन गया है।
यहां के ग्रामीण जड़ी-बूटी की खेती कर हर साल इससे करीब 10 से 15 लाख रुपये की आमदनी रहे हैं। कभी जड़ी बूटी की खेती में खास रुचि नही रखने वाले बौन के ग्रामीण अब सरकार की पहल और उत्तराखंड जड़ी बूटी शोध संस्थान के प्रयासों के बाद अपने खेतों में दुर्लभ जड़ी बूटियों का उत्पादन करने लगे है।
हिमालय से लगे हुए सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के लोग सदियों से यहां पैदा होने वाली जड़ी बूटियों के सहारे स्वस्थ रहते आये है, लेकिन अब तक जंगलों में पाए जाने वाली इन जड़ी बूटियों को यहां के लोग अब खेतों में भी उगा रहे है और व्यापक स्तर पर इसका उत्पादन करके अपनी जीविका को बेहतर कर रहे है।
ज़िले के उच्च हिमालयी क्षेत्र दारमा वैली के बौन गांव में बड़ी तादात में दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती की जा रही है जिस कारण बौन गांव को जिले का पहला हर्बल विलेज भी घोषित किया गया है। सरकार की पहल के बाद जड़ी बूटी उत्पादन यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय बनकर उभरा है।
यहां के स्थानीय लोगो का कहना है कि जिन जड़ी बूटियां को उनके पूर्वज जंगलों से लाते थे, आज गाँव में ही उनकी खेती व्यापक स्तर पर हो रही है । जिससे बौन गांव को एक नई पहचान मिली है। ग्रामीणों ने इसका श्रेय जड़ी बूटी शोध संस्थान पिथौरागढ़ को दिया है।
दारमा घाटी प्रसिद्ध पंचाचूली पर्वत की तलहटी में स्थित धौली नदी के आसपास बसी है। दारमा के अन्तर्गत 14 गांव आते है। जहां पारम्परिक तरीके के जम्बू, कुटकी, गंदरायन, अतीस, कुठ, काला जीरा सहित अनेक जड़ी बूटियों की खेती व्यापार स्तर पर हो रही हैं। जड़ी बूटी शोध संस्थान पिथौरागढ़ द्वारा 2009 में इस इलाकें में औषधीय पौंधों की खेती के लिए सर्वेक्षण किया गया था। लेकिन तब तक यहां के लोगों को जड़ी बूटियों की खेती के प्रति रुझान नही था । संस्थान द्वारा पौंधे उपलब्ध करा कर यहां के लोगों को जड़ी बूटी उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया, जिसका परिणाम यह रहा कि आज यह गांव जड़ी बूटी की खेती के लिए जाना जाता है । जिससे ग्रामीणों को आय के भी बेहतर साधन मिले है।
उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र अनेक औषधीय जड़ी बूटियों से भरे पड़े है। यहां के जंगलों में कई दुर्लभ जड़ी बूटियां पायी जाती है जिनका इस्तेमाल निरोगी रहने के लिये स्थानीय लोग आदिकाल ही से करते आ रहे है। लेकिन सरकार और प्रशासन के प्रयास के बाद हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोग अब इन जड़ी बूटियों की खेती कर आत्मनिर्भर तो बन ही रहे है साथ ही समाज को स्वस्थ्य रहने की प्रेरणा भी दे रहे है।