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गिरीश जोशी ने आर्गनिक खेती कर कायम की मिशाल अल्मोड़ा। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट के जजुट गांव के काश्तकार गिरीश जोशी ने आर्गनिक खेती अपना कर मिशाल कायम की है।

 

 

 

 

 

पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के प्रवासियों के लिए वह घर वापसी के लिए प्रेरणास्रोत कहे जा सकते हैं। जजुट गांव आम तौर पर वैद्य व ज्योतिषियों के गांव के तौर पर अपनी पहचान रखता था।

 

 

 

 

 

प्रदेश के पहाड़ के अन्य गांवों की तर्ज पर इस गांव से भी पलायन हुआ है। विशेष तौर पर सवर्ण ब्राह्मण परिवार यहां से बाहर चले गए हैं। लेकिन गिरीश जोशी जैसे लोग अभी यहां बने हुए हैं जोकि तकनीकि शिक्षा लेने के बावजूद बाहर जाने के बजाय अपने मांटी से जुड़े हुए हैं।

 

 

 

 

 

 

गिरीश जोशी व उनक पत्नी कमला जोशी ने गांव में रह कर स्वरोजगार की राह चुनी है। आर्गनिक खेती के साथ ही फलोत्पादन कर रहे हैं। सब्जी उत्पादन उनकी आमदनी का प्रमुख जरिया है। गिरीश जोशी का कहना है

 

 

 

 

 

कि शासन प्रशासन के स्तर से उनकी पहल को कई बार सराहा गया है नैनीताल की वर्तमान डीएम वंदना ने पिथौरागढ़ में सीडीओ रहते अगस्त 2019 में उनके गांव का दौरा कर यहां चल रही कवायद को न केवल सराहा था बल्कि आगे मदद का भरोसा भी दिलाया था। इसके बाद भी कई अधिकारी नेता गांव पहुंचे लेकिन कारगर मदद नहीं मिल सकी है।जोशी परिवार के साथ ही गांव के अन्य काश्तकार मेहनत से उत्पादन तो करते हैं लेकिन विपणन के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने से वाजिब दाम नहीं मिल पाने से मायूस हैं। जोशी कहते हैं कि उत्पादन फल व सब्जी के विपणन की सही व्यवस्था होने पर काश्तकार दोगुने उत्साह से काम कर सकते हैं। गांव के सम्मानित बुजुर्ग लक्ष्मी नारायण पंत भी सब्जी उत्पादन करते हैं। उन्होंने बकायदा पालीहाउस स्थापित किया है। वर्तमान में उनके खतों में पैदा की गई बीन की सब्जी उनकी आय का साधन बन रही है। गांव के अनुसूचित परिवारों ने सब्जी उत्पादन को अपनी आमदनी का जरिया बनाया है। गंगोलीहाट बाजार में सब्जी उपलब्ध कराने में जजुट गांव अहम योगदान दे रहा है।

 

 

 

 

 

होम स्टे की शुरूआत कीः गिरीश जोशी ने खेती बाड़ी के साथ ही होम स्टे का नया प्रयोग भी किया है। गांव के मूल निवासी अपनी जड़ों की तलाश में यहां पहुंचने पर उनके होम स्टे का सहारा लेते हैं। हालांकि इसको विस्तार देने की उनकी मंशा प्रदेश में प्रचलित जटिल प्राविधान आढ़े आ रहे हैं। इसके बावजूद वह व्यक्तिगत तौर पर अपना प्रयास जारी रखे हुए हैं। उनकी पत्नी कमला व बेटा कविराज जोशी के साथ ही बहू भी इस कार्य में उनको पूरे मनोयोग से सहायता करती हैं। जोशी परिवार गौ पालन भी करता है ताकि आर्गनिक खाद बनाई जा सके। जोशी की इस पहल को देखने आए दिन लोग यहां पहुंचते रहते हैं। कुल मिलाकर जजुट गांव में रह रहे चंद परिवार पलायन कर चुके लोगों के लिए वापस आने के लिए प्रेरणास्रोत कहे जा सकते हैं। बकरी पालन से वैकल्पिक रोजगार
अल्मोड़ा। जजुट गांव के ग्रामीण सब्जी के साथ ही स्वरोजगार के लिए अन्य विकल्प भी अपना रहे हैं। गांव के मोहन सिंह (मोहन दा) ने बताया कि उन्होंने बकरी पालन को भी आय का साधन बनाया है। गांव में रह कर ही उन्होंने बेटे बेटियों की शादी कर दी है वहीं सबसे छोटी बेटी इस बार इंटर में प्रथम श्रेणी में पास हुई है। अनुसूचित वर्ग के परिवारों ने भी सब्जी उत्पादन के साथ बगरी पालन को रोजगार का जरिया बना रखा है।

वरिष्ठ पत्रकार जगदीश जोशी जी की कलम से

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