Almora News:मेडिकल कॉलेज को 20 माह बाद भी नही मिला ब्लड बैंक,प्रसव के आठ दिन बाद महिला ने तोड़ा दम

यहां मेडिकल कॉलेज में एक प्रसूता की अधिक रक्तस्राव के कारण प्रसव के आठ दिन बाद मौत हो गई। इन आठ दिनों में प्रसूता का पति ब्लड के लिए बेस अस्पताल से सात किलोमीटर दूर जिला अस्पताल के चक्कर काटता रहा, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका।मेडिकल कॉलेज में ब्लड बैंक नहीं होने से कारण तीमारदारों को मरीजों की गंभीर हालत के बावजूद एक से दूसरे अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
🔹जाने मामला
कपकोट बागेश्वर निवासी सीता देवी (35) गर्भवती थीं। प्रसव पीड़ा के दौरान सीता को स्थानीय अस्पताल के डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा रेफर कर दिया। 20 अक्तूबर को पति भुवन सिंह उन्हें मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने केस को जटिल बताते हुए ऑपरेशन करने की बात कही। भुवन की सहमति के बाद सीता का ऑपरेशन से प्रसव कराया गया। सीता ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, लेकिन उसकी हालत बिगड़ गई। मेडिकल कॉलेज में ब्लड बैंक नहीं होने के कारण ऑपरेशन के दौरान भुवन को खून के लिए कई चक्कर जिला अस्पताल के लगाने पड़े। ऑपरेशन के बाद प्रसूता का रक्तस्राव जारी रहा और वह कोमा में चली गई।
🔹मरीज को न बचा पाने का डॉक्टरों को अफसोस
इस पर डॉक्टरों ने दूसरा ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। दूसरा ऑपरेशन तो हो गया, लेकिन सीता की हालत बिगड़ती चली गई। इसके बाद भी रक्तस्राव नहीं रुका। 28 अक्तूबर की रात को प्रसूता ने दम तोड़ दिया। इस बीच भुवन को छह बार ब्लड के लिए सात किलोमीटर दूर जिला अस्पताल के चक्कर काटने पड़े। मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा के प्राचार्य डॉ. सीपी भैंसोड़ा ने बताया कि महिला की हालत बहुत खराब थी, ऑपरेशन के बाद से ही प्रसूता कोमा में चली गई थी। प्रसूता को बचाने के लिए डॉक्टरों ने पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। ब्लड की कमी का कोई कारण नहीं था। मरीज को न बचा पाने का डॉक्टरों को भी अफसोस है।
🔹चार जिलों की लाइफलाइन को 20 माह में नहीं मिला एक ब्लड बैंक
कार्यालय संवाददाता। पहाड़ के चार जिलों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले मेडिकल कॉलेज को 20 माह बाद भी एक अदद ब्लड बैंक नहीं मिल पाया। हर बार कॉलेज प्रशासन आश्वासन की उम्मीद पर सहम जाता है, लेकिन व्यवस्था के नाम पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
🔹पैदा होने के आठ दिन में छूटा मां का आसरा
सीता ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था, सिजेरियन के कारण बच्चा तो बच गया, लेकिन मां नहीं बच पाई। महज आठ दिन में ही बच्चे के सिर से मां का साया उठ गया। परिजनों के मुताबिक सीता बच्चे का मुंह तक नहीं देख पाई। क्यों कि बच्चे के पैदा होने के बाद से ही सीता आईसीयू भर्ती हो गई थी।
🔹पहले भी बच्चे के लिये भटका पिता
कुछ माह पूर्व एक पिता बच्चे के लिए यहां-वहां भटका। दरअसल गंभीर बीमारी से जूझ रहे बच्चे को ब्लड की जरूरत पड़ी। ऐसे में पिता ने जिला अस्पताल का रुख किया। लेकिन ब्लड नहीं मिला। पिता को हल्द्वानी संपर्क करना पड़ा। यहां भी बारिश ने खलल डाला। मजबूरन उसे ही बारिश के बीच भीगते हुए भीमताल तक जाना पड़ा। तब जाकर ब्लड की व्यवस्था हो पाई।