लंबे संघर्ष के बाद आख़िरकार सेवानिवृत्त सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी रमेश चंद्र पाण्डे को रिटायरमेंट के 8 माह बाद पेंशन ग्रेच्युटी मिल गई।

0
ख़बर शेयर करें -

 

 

 

 

नैनीताल – आख़िरकार सेवानिवृत्त सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी रमेश चंद्र पाण्डे को रिटायरमेंट के 8 माह बाद पेंशन ग्रेच्युटी मिल गई। श्री पाण्डे ने शनिवार को कुमाऊं कमिश्नर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर पेंशन मिलने में हुए विलम्ब के लिए जवाबदेही तय करने तथा नियम व शासनादेशों की मनमानी व्याख्या पर कड़ाई से अंकुश लगाकर राज्य में वित्तीय अनुशासन में एकरुपता कायम करने की मांग की है ।

 

 

 

 

 

 

 

 

सी०एम०हैल्पलाइन के प्रभाव से मिली पेंशन के लिए मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने पेंशन को लेकर 2अक्टूबर से आमरण अनशन की घोषणा को वापस ले लिया है। उन्होंने इस संवेदनशील मुद्दे को प्रभावी ढंग से उजागर करते हुए सरकार तक पहुंचाने में दिये गये सहयोग के लिए मीडिया का विशेष आभार व्यक्त किया है ।

 

 

 

 

 

 

 

ज्ञापन में कहा गया है कि यद्यपि रिटायरमेंट के 8 माह बाद उनकी पेंशन/ग्रेच्युटी स्वीकृत हो गई है लेकिन स्वीकृति में विलम्ब के कारण उन्हें जो आर्थिक क्षति हुई उसकी प्रतिपूर्ति के लिए उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाना शेष है

 

 

 

 

 

 

 

 


उन्होंने जवाबदेही को इसलिए भी जरूरी बताया है ताकि नियम/शासनादेश की मनमानी व्याख्या से जिस मानसिक एवं आर्थिक पीड़ा से उन्हें गुजरना पड़ा ऐसी पीड़ा से किसी और सेवानिवृत्त कार्मिक को न गुजरना पड़े और राज्य में वित्तीय अनुशासन में एकरुपता कायम हो सके ।
ज्ञापन में पेंशन में हुए विलम्ब के लिए इन बिन्दुओं के आधार पर उत्तरदायित्व निर्धारित कराये जाने की मांग की है –

 

 

 

 

 

 

 

1- पेंशन प्रकरण में कोषागार अल्मोड़ा द्वारा पांच बार लगाई गयी आपत्तियों के सम्बन्ध में जिला लेखा परीक्षा अधिकारी अल्मोड़ा के पत्र सं०1/6527 दिनांक 13-9-22 द्वारा आपत्ति वार किये गये परिपालन का पूर्ण विवरण दिया गया है । कोषागार द्वारा ए०सी०पी० से सम्बन्धित जिस शासनादेश संख्या 65 दिनांक 9-3-19 के अनुरूप पेंशन प्रपत्र तैयार कर प्रेषित करने हेतु बार बार आपत्ति लगाई गई उसके सम्बन्ध में स्पष्ट किया गया कि ए०सी०पी०का लाभ ही नहीं लिए जाने के कारण इस प्रकरण में यह आदेश प्रभावी नहीं होता है । जिला लेखा परीक्षा अधिकारी द्वारा उक्त शासनादेश के सभी बिन्दुओं पर आख्या प्रेषित करते हुए यह भी स्पष्ट किया गया कि शासनादेश के बिन्दु 4 में संविदा, दैनिक एवं आउटसोर्स के रुप में नियुक्त कार्मिकों को वार्षिक वेतनबृद्धि नहीं देने का प्रावधान है जबकि इस प्रकरण में नियुक्ति इससे भिन्न (तदर्थ) है । यह भी स्पष्ट किया गया कि वित्तीय हस्तपुस्तिका के खण्ड ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

भाग ।। से ।v के मूल नियम 22(ग) जो ऐसे सरकारी कर्मचारी जिसका पुनर्धारणाधिकार(लियन) किसी स्थायी पद पर न हो के लिए प्राविधानित है, के अनुसार तदर्थ अवधि में सम्बंधित कार्मिक को प्राप्त वार्षिक वेतनबृद्धियों को सन्दर्भ में लिया जा सकता है । पत्र में कोषाधिकारी से आपत्ति को स्पष्ट करने का अनुरोध किया गया और इस सम्बन्ध में आडिट निदेशालय से भी मार्गदर्शन चाहा गया ।
2- श्री पाण्डे द्वारा 25जून को सी०एम०हैल्प लाइन में दर्ज शिकायत के निराकरण हेतु पोर्टल में 12 सितंबर 22 को जानकारी दी गई है कि आडिट निदेशालय पत्रांक 501 दिनांक 8 सितम्बर 22 द्वारा जिला लेखा परीक्षा अधिकारी अल्मोड़ा को कोषागार द्वारा उठाई गई आपत्तियों के त्वरित परिपालन हेतु निर्देशित किया गया है ।

 

 

 

 

 

 

आडिट निदेशालय द्वारा दिए गए इस निर्देश से विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या कोषागार द्वारा उठाई गई आपत्ति से आडिट निदेशालय सहमत हैं ? यदि हां तो क्या राज्य के स्थानीय निकाय के कार्मिकों के पेंशन प्रकरणों की स्वीकृति के लिए अधिकृत आडिट निदेशालय द्वारा आज तक किसी पेंशन प्रकरण में ऐसी आपत्ति उठाई ?

 

 

 

 

 

 

3- जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के उक्त पत्र में दिये गये तर्क को नजर अंदाज करते हुए कोषाधिकारी अल्मोड़ा के पत्र संख्या 1051 दिनांक 15-9-22 में शासनादेश सं० 65 दिनांक 9-3-19 के बिन्दु 1एंव 4को स्पष्ट करते हुए अवगत कराया गया है कि ” विनियमितिकरण की तिथि को तदर्थ सेवा में प्राप्त वेतनबृद्धियों को संरक्षित कर प्रारम्भिक वेतन निर्धारण में सम्मिलित किये जाने के सम्बन्ध में वित्तीय नियमों/ शासनादेशों में कोई उल्लेख नहीं है ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अत: तदर्थ रूप से नियुक्त कार्मिक के पद का विनियमितीकरण की तिथि को उस पद के प्रारम्भिक वेतन में वेतन निर्धारण किया जाना नियम संगत है “।
कोषाधिकारी अल्मोड़ा के उक्त पत्र के आखिरी पैरा में तदर्थ कार्मिकों की वेतन वृद्धि एवं वेतन निर्धारण के सम्बन्ध में दिये गये स्पष्टीकरण को पारस्परिक विरोधाभासी बताते हुए श्री पाण्डे द्वारा कहा गया कि यह मनमानी व्याख्या का उदाहरण है। ऐसा उदाहरण उत्तराखंड के इतिहास में पेंशन प्रकरणों की स्वीकृति के लिए अधिकृत कोषागार अल्मोड़ा के सिवाय न तो किसी अन्य कोषागार में देखने को मिला और न निदेशालय पेंशन एवं हकदारी एवं आडिट निदेशालय में देखने को मिला ।

 

 

 

 

 

 

 

4- कोषाधिकारी अल्मोड़ा के उक्त पत्र के बाद ज़िला लेखा परीक्षा अधिकारी ने दिनांक 19-9-2 को श्री पाण्डे का वेतन निर्धारण आदेश जारी किया जिसमें नियुक्ति की तिथि अप्रैल 1984 से वर्ष 1990 तक प्राप्त वार्षिक वेतनबृद्धियों को विलुप्त करते हुए नियमितीकरण की तिथि दिनांक 12-10-90 को न्यूनतम वेतन रु० 950.00पर वेतन निर्धारित कर दिया गया जबकि इस तिथि को श्री पाण्डे का वेतन रु० 1030-00 था । इस पर श्री पाण्डे का कहना है कि उत्तर प्रदेश में उनके ही साथ नियुक्त दर्जनों कार्मिकों में से अधिकांश कार्मिक उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य से सेवानिवृत्त हो चुके हैं लेकिन किसी के भी पेंशन प्रकरण में आज तक ऐसी आपत्ति नहीं लगी ।

 

 

 

 

 

 

ऐसी स्थिति में गम्भीर जांच का विषय यह है कि आखिर कौन सही है ? यदि कोषागार अल्मोड़ा द्वारा लगाई गई उक्त आपत्ति सही है तो सवाल उठता है कि पेंशन स्वीकृति हेतु अधिकृत अन्य कोषागार, निदेशालय पेंशन एवं हकदारी तथा आडिट निदेशालय द्वारा आज तक किसी प्रकरण में ऐसी आपत्ति क्यों नहीं उठाई ?और इसके कारण जो वित्तीय अनियमितता व अधिक भुगतान हुआ उसके लिए आखिर कौन उत्तरदायी है ?

 

 

 

 

 

 

5- ग्रेच्युटी पेमेंट एक्ट 1972 के सैक्शन 3 एवं 3(a) में निहित प्राविधान के अनुसार रिटायरमेंट के एक माह के भीतर ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाना चाहिए और ऐसा नहीं होने पर देय तिथि से भुगतान की तिथि तक की अवधि के ब्याज का भुगतान किए जाने का प्रावधान है । ज्ञापन में ग्रेच्युटी के भुगतान में विलम्ब के कारण हुई आर्थिक क्षति की प्रतिपूर्ति के रूप में श्री पाण्डे ने उक्तानुसार ब्याज का भुगतान कराये जाने की मांग की है ।

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *