ब्यूरोक्रेसी की अहम भूमिका ब्यूरोक्रेसी के तालमेल से सम्भव है प्रदेश का विकास : हरीश रावत
उत्तराखंड: मैं अपने अनुभव के आधार पर इस तथ्य को दोहराना चाहता हूंँ कि यदि मुख्यमंत्री और मंत्री फ्रंट से नेतृत्व प्रदान करते हैं तो ब्यूरोक्रेसी पूरी शक्ति लगाकर उनके निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करती है।
हमारे राज्य का औद्योगिक ढांचा अस्तित्व में आने से पहले लगभग शून्य था। तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय नारायण दत्त तिवारी जी और उनकी सरकार ने निर्णय लिया कि हम केंद्र सरकार की टैक्स होलीडे स्कीम का फायदा उठाते हुए राज्य के अंदर सिडकुलों की स्थापना करेंगे और उसके लिए भूमि आदि का चयन व आगे उठाए जाने वाले कदम ब्यूरोक्रेसी को सौंप दिए गये। परिणाम यह रहा कि हम 3 साल के अंदर एक औद्योगिक शक्ति के रूप में उभर आये।
दूसरा उदाहरण बहुचर्चित कुंभ जो निशंक जी के कार्यकाल में संपादित हुआ। अनुमान से लगभग दुगने लोग आये। यदि कुंभ को बहुत सफल नहीं, तो ऐसा भी नहीं है कि कुम्भ को हम अपनी एक उपलब्धि न मानें!
तीसरा उदाहरण 2013-14 में राज्य में देश की भीषणतम् प्राकृतिक तबाही आई, हजारों लोग अकाल कालकल्वित हुये। राज्य का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा केदारनाथ से लेकर हरिद्वार में बालावाली तक और दूसरी तरफ सितारगंज से लेकर मुनस्यारी-धारचूला तक तबाह हो गया, संचार व्यवस्थाएं, सड़कें आदि टूट-फूट गई, घरों में मलवा भर गया, खेत और खेती बर्बाद हो गई।
पानी की योजनाओं से लेकर स्कूल, अस्पताल आदि सब मलबे से आच्छादित हो गए। बिजली की व्यवस्था तहस-नहस हो गई। मगर राज्य ने लगभग पौने दो वर्षों में ऐतिहासिक रूप से पुनर्वास और पुनर्निर्माण का काम संपादित किया। वर्ष 2013-14 की आपदा से प्रभावित एक भी व्यक्ति आपको शिकायत करता हुआ नहीं मिलेगा। ये ऐतिहासिक सफलताएं केवल मुख्यमंत्री और सरकार के निर्णयों का ही परिणाम नहीं थी, बल्कि उन निर्णयों को लागू करने में ब्यूरोक्रेसी ने तत्परता दिखाई उसको भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए।
चारधाम यात्रा और नंदा राजजात यात्रा, पर्यटन को पटरी पर लाना, उस समय संभव नहीं था जब प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं से दैवीय आपदा से कुप्रभावित नहीं था, उसको मदद की आवश्यकता थी और यदि हम व्यक्तियों को या व्यक्तियों के समूहों को हुए नुकसान का आकलन नियमानुसार करते तो तीन-चार साल आकलन करने में ही लग जाते और फिर मदद करना और व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने में और समय लगता। हमने निर्णय लिया कि हम क्षतिपूर्ति सेल्फ एसेसमेंट अर्थात जिसकी क्षति हुई है, वही व्यक्ति एसेसमेंट देगा कि मेरी कितनी क्षति हुई है और उसके आधार पर हम अंतिम निर्णय लेकर क्षति पूर्ति करेंगे।
कोई दूसरा उदाहरण इस तरीके की क्षति पूर्ति का देश में नहीं था, लेकिन हमने उदाहरण बनाया और ब्यूरोक्रेसी ने सहयोग दिया। दूर-दूर गांवों तक फैली हुई टूट-फूट सड़क, पानी की योजनाओं आदि के पुनः मरम्मत करके काम चलाने लायक बनाना वर्षों का काम था, क्योंकि आगणन बनाने में ही 1 साल लग जाता। हमने हर क्षेत्र में दो इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट और एक एसडीएम की स्पेशल टास्क फोर्स गठित की और उनको 5 करोड़ रुपए तक खर्च करने का अधिकार दिया। 5 करोड़ से अधिक खर्च करने का अधिकार जिलाधिकारी और कमिश्नर को दिया और उसका परिणाम यह रहा कि 6 महीने के अंदर सभी क्षेत्रों में पुनर्निर्माण के काम या तो पूरे हो गए या प्रारंभ हो गए और जो बड़े काम थे उनको हमने आगणन के आधार पर प्रारंभ किया। कुछ क्षेत्रों में जैसे केदारनाथ क्षेत्र में यदि हम इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के भरोसे रहते तो फिर काम नहीं हो सकता था।
हमने नियम से हटकर के गैर तकनीकी लोगों को निर्माण कार्य का दायित्व सौंपा। जिनमें ऊंचाई वाले स्थानों पर हेलीपैड बनाने से लेकर के सुरक्षा दीवारें बनाने, सरस्वती और भिलंगना, दोनों को अलग-अलग करके पुराने प्रवाह क्षेत्र में बहाने, घाट निर्माण के काम और आवास आदि बनाने के काम थे, वो सौंपे। जिसको लोग नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) के नाम से जानते हैं, उनके पास तकनीकी एक्सपर्टाइज नहीं थी, हमने नियमों को शिथिल करके वह दायित्व उनको सौंपा और उसका परिणाम 1 वर्ष के अंदर ही नजर आया जिसकी सारी दुनिया ने तारीफ की। क्या यह तीनों निर्णय जो मैंने आपके साथ साझा किए हैं, बिना ब्यूरोक्रेसी के सहयोग के लिये जा सकते थे? मैं जानता हूं उस समय भी कुछ अधिकारी घबराए रहते थे और कहते थे कि हम तो सीधे जेल जाएंगे। लेकिन हमने फ्रंट से लीड किया, उनकी हिम्मत बढ़ाई और जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और उसका परिणाम रहा कि कुछ लोग जुटे, उन्होंने हिम्मत दिखाई और उस हिम्मत के परिणाम स्वरूप पुनर्निर्माण व पुनर्वास का काम ऐतिहासिक रूप से सफल हुआ। ये मैंने तीन उदाहरण आपके साथ साझा किए हैं, वैसे और भी मेरे पास उदाहरण हैं जिनमें गैरसैंण में जहां कुछ भी व्यवस्थाएं नहीं थी, विधानसभा का सत्र टेंट में आयोजित करने का निर्णय भी सम्मिलित है। यह सब चीजें संभव हुई क्योंकि मंत्रिमंडल और राजनीतिक नेतृत्व फ्रंट से लीड करने को तैयार था और ब्यूरोक्रेसी ने पूरा सहयोग किया।
हमारे राज्य में ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं, जिन उदाहरणों का हम सब उल्लेख करते हैं और वो उल्लेख करने लायक उदाहरण इसलिए बने क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने फ्रंट से लीड किया और ब्यूरोक्रेसी ने सहयोग दिया।
मैं उम्मीद करता हूं कि हमारे नए मुख्यमंत्री जी अब नए नहीं हैं, पुराने हैं उनको दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला है तो ये अच्छे उदाहरणों को आगे रखकर कुछ एक प्रभावी रोड मैप ब्यूरोक्रेसी के सामने रखेंगे और मुझे पूरी उम्मीद है कि राजनीतिक नेतृत्व और ब्यूरोक्रेसी का नेतृत्व मिलकर के उस रोड मैप के अनुसार राज्य को विकास की ऊंचाइयों पर लेकर जायेगा।
हम विपक्ष हैं मगर रचनात्मक विपक्ष हैं, इस काम में हमारा भी उनको सहयोग और प्रशंसा मिलेगी।