कपकोट के पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण ने वृद्धाआश्रम की कुंती देवी को मुखाग्नि देकर निभाई सामाजिकता की मिशाल
एक छोटा सा प्रयास कभी कभार बहुत सार्थक हो जाता है। अपने 50 साल के सफर में पहली बार यह सौभाग्य मिला।
आज वृद्धाआश्रम में जब कुंती देवी जी का निधन हुआ तो उनकी चिता को अग्नि देने वाला कोई उनका चिर- परिचित मौजूद नही था न ही समाज कल्याण के फाइलों में उनके परिजनों का कोई रिकॉर्ड था।
फिर विवश निर्जीव शरीर को बस मुखाग्नि ही तो देना है ये बात सोचकर मैं तुरन्त घाट गया और समाज कल्याण के अधिकारियों से बात की।
मैंने न जाने कितने लोगों के लिए काम किया है पर आज जब मैंने घाट में एक अनजान को मुखाग्नि दी तो मुझे मेरी माँ की याद आ गयी। समाज के बीच रहने के कारण मुझे मेरी माँ के साथ रहने का बहुत कम समय मिला। उनके अंतिम समय में भी मैं उनके साथ नही था। कई बातें मेरे मन मष्तिस्क में उपज रही थी।
फिर अंतिम क्षणों में जयदा न सोचते हुए मैंने कुंती देवी जी को अपनी माँ के परिपेक्ष्य में रखकर उनके सुपुत्र समान उनकी चिता को मुखाग्नि देकर शायद मैंने अपनी माँ के दिए संस्कारों का ऋण चुका दिया है या नही मैं खुद असमंजस में हूँ।
पर जो भी आज मन बेहद प्रसन्न है।